राजसमन्द। राजस्थान साहित्यकार परिषद कांकरोली की ओर से मासिक संगोष्ठी संस्था अध्यक्ष शेख अब्दुल हमीद की अध्यक्षता में बडारडा स्थित शिवशक्ति भोजनालय एवं रेस्टोरेंट मे आयोजित की गई। संगोष्ठी में मनोहर सिंह आशिया मनमोजी ने समाज क तडफ को अभिव्यक्ति देते हुए तडफ-तडफ के वो जहां मे मर रहा होगा, बून्द एक पीने को प्यास तरस रहा होगा प्रस्तुत की। नगेन्द्र मेहता ने आतंकवादी हमारी समस्या नहींहै भावाें की अभिव्यक्ति को भूमण्डलीय करण के दौर मे मलेरिया के डेंगू की भांति समाज के विश को इंगित किया। जवानसिह सिसोदिया ने राजस्थान संगीत की मधुर राग में तन्दूरा के सायें मे ममता रो मन्दर मां के माध्यम से मां की मुस्कान को ईश्वर के समकक्ष बताया है। अफजल खां अफजल ने अल सुबहा चक्की चलाती मां के माध्यम से मां की विशालता को प्रस्तुति देते हुए मां तुमने मुझे अपना कितना दूध पिलाया। मुझे याद नहींहै मां के महत्व को प्रस्तुत किया। कमर मेवाडी ने बच्चू भाईकी चाय की जारी जिक्र करते हुए बच्चू की चाय में उसके प्यार की मिठास को दर्शाया साथ ही कई लोगों द्वारा जमा होकर घर गृहस्थी और राजनीति की बातो से बच्चूं का कोई सरोकार न होना बताया है। भंवर बोस ने अच्छे प्रत्याशी के चुनाव पर प्रकाश डालने वाली समसामयिक रचना प्रस्तुत कर मैंने भी अपना वोअ दे दिया कविता प्रस्तुत की। कृष्ण गोपाल खण्डेलवाल ने अगर मिला सच्चा जौहरी तो यह हीरे की किस्मत समझो, के माध्यम से अच्छे चरित्र पर बल दिया। एमडी कनेरिया स्नेहिल ने अपनी कविता केमाध्यम से नदी जैसे अपनी राह स्वयं बना लेती हे राह में आने वाली चट्टानों को बहा ले जाती हे। उसी प्रकार से आज की युवा पीढी के अपनी राह स्वयं बनाते हुए देश का नव निर्माण करना चाहिए का संदेश दिया। माधव नागदा ने अपने अभिन्न मित्र की यादाें को ताजातरीन करते हुए संस्मरण सुनाया जिसके माध्यम से जातिगत भावना से परे हटकर मील का पत्थर की तरह मुसीबत आने पर लोगाें की रक्षा करने पर बल दिया। रामसहाय विजयवर्गीय ने सन 87 में लिखी रचना शरद पूर्णिमा के माध्यम से संस्काराें पर बल दिया। राधेश्याम सरावपगी मसूदिया ने अपनी रचना रश्म ओ रिवाजों से खूबसूरत लगती हे दुनियां प्रस्तुत की। अन्तिम चरण में अध्यक्षता करते हुए शेख अब्दुल हमीद ने आंखो में आये अश्क-ए-नदामत संभाल लू-अब तो यही है बस मेरी दौलत संभाल लूं गजल प्रस्तुत की एवं अध्यक्षीय उद्बोधन दिया। कार्यक्रम का संयोजन राधेश्याम सरावगी मसूदिया ने किया। गोष्ठी की मेजबानी कृष्णगोपाल खण्डेलवाल ने की।
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