राजसमन्द। मुनि तत्वरूचि तरूण ने कहा कि आसक्ति बन्धन और अनासक्ति मोक्ष है। पदार्थ के प्रति ममत्व का भाव आसक्ति है। आसक्ति जन्म - मरण और दुख का हेतु है। वीतराग भाव आसक्ति नाशक और दुख मंजक है। उक्त विचार उन्होने रविवार को किशोरनगर स्थित चंदन निवास पर आयोजित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होने कहा कि पदार्थ अपने आप मेंं न बन्धन है न दुख है। पदार्थ के प्रति जो ममत्व भाव है वहीं बन्धन और दुख है। राग, द्वेष ओर मोह की चेतना मुक्ति में बाधक है। वास्तव में आसक्ति संसार और अनासक्ति का भाव ही मोक्ष है। इससे पूर्व मुनि तत्वरूचि तरूण अपने सहवर्ती संतो के साथ सौ फिट रोड से विहार कर किशोरनगर में गांधी सेवा सदन के सामने चन्दन निवास पर पहुंचे, जहां किशोरनगर क्षेत्र के श्रावक-श्राविकाआें ने संतो का स्वागत किया।
आत्मिक सत्ता मत से नहीं, सत् से मिलती है : मुनि जतन कुमार
राजसमन्द। मुनि जतन कुमार लाडनूं ने कहा कि भौतिक सत्ता की प्राप्ति में मत का महत्व है लेकिन आत्मिक सत्ता मत से नहीं, सत से मिलती है। मत से प्राप्त भौतिक सत्ता के अस्थायी है। स्थायी और वास्तविक तो आत्म सत्ता है जो सत्य पथ पर चलने से प्राप्त होगी। यह विचार उन्होने शनिवार रात को तेरापंथ भवन बोरज में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। मुनि ने कहा दिल्ली की सत्ता का उपयोग स्वार्थ की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि जनता की भलाई के लिए हो। परहित की भावना से रहित प्राप्त अधिकार धिक्कार है। सत्ता सेवा भावना से शोभित होती है। इस अवसर पर मुनि आनन्द कुमार ने कहा कि दुनिया में दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं सान और दुर्जन। सान मानव है, दुर्जन दानव है। सान घर परिवार की सम्पत्ति है जबकि दुर्जन घर परिवार की विपत्ति है। सान मानवता का संदेश देते हैं वहीं दुर्जन कलह कदाग्रह से ग्रसित होते हैं। इस अवसर पर बडी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे।
आत्मिक सत्ता मत से नहीं, सत् से मिलती है : मुनि जतन कुमार
राजसमन्द। मुनि जतन कुमार लाडनूं ने कहा कि भौतिक सत्ता की प्राप्ति में मत का महत्व है लेकिन आत्मिक सत्ता मत से नहीं, सत से मिलती है। मत से प्राप्त भौतिक सत्ता के अस्थायी है। स्थायी और वास्तविक तो आत्म सत्ता है जो सत्य पथ पर चलने से प्राप्त होगी। यह विचार उन्होने शनिवार रात को तेरापंथ भवन बोरज में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। मुनि ने कहा दिल्ली की सत्ता का उपयोग स्वार्थ की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि जनता की भलाई के लिए हो। परहित की भावना से रहित प्राप्त अधिकार धिक्कार है। सत्ता सेवा भावना से शोभित होती है। इस अवसर पर मुनि आनन्द कुमार ने कहा कि दुनिया में दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं सान और दुर्जन। सान मानव है, दुर्जन दानव है। सान घर परिवार की सम्पत्ति है जबकि दुर्जन घर परिवार की विपत्ति है। सान मानवता का संदेश देते हैं वहीं दुर्जन कलह कदाग्रह से ग्रसित होते हैं। इस अवसर पर बडी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे।
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