Friday, May 15, 2009

शिविर में सम्पर्क से संस्कार पल्लवित होते हैं : मुनि कोमल कुमार

राजसमन्द। मानव जीवन में शिक्षा सेपूर्व संस्काराें का महत्व है जो बच्चे जन्म लेते हैं। जन्म के बाद माता-पिता चिन्ता मे डूब जाते हैं कि मेरा बच्चा अच्छा विद्वान बनें। उक्त विचार मुनि तत्वरूचित तरूण के सहयोगी संत मुनि कोमल कुमार ने शुक्रवार को अणुव्रत विश्व भारती राजसमन्द की ओर से आयोजित चतुर्थ राष्ट्रीय ज्ञानशाला शिविर के उद्धाटन सत्र मे शिविरार्थियाें को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने संस्काराें के लिए शिविराें को महत्वपूर्ण बताया। शिविरो में एक दूसरे के साथ सम्पर्क से संस्कार पल्लवित होते हैं। समारोह अध्यक्षता ज्ञानशाला के राष्ट्रीय प्रशिक्षक निर्मल कुमार नवलखा ने की। प्रारंभ में ज्ञानशाला राजनगर ने मंगल गीत प्र्रस्तुत किया। शिविर निदेशक प्रकश तांतेड ने अणुविभा की प्रवृतियाें पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर संयोजक मदन धोका, मंत्री अशोक डूंगरवाल ने भी विचार व्यक्त किए। शिविर में अहमदाबाद, सूरत, मुम्बई, केलवा, दिवेर, भीलवाडा, राजनगर, धोइन्दा, उदयपुर, रेलमगरा, बिनोल, कांकरोली, आमेट आदि स्थानाें से 109 बालक-बालिकाओं ने भाग लिया। वहीं प्रकाश तातेड, चतुर कोठारी व साबिर शुक्रिया के मार्गदर्शन में अणुव्रत दीर्घा, तुलसी दर्शन दीर्घा, महाप्रज्ञ दर्शन एवं ज्ञानशाला कक्ष पर प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। अन्त में देवीलाल कोठारी, क्षेत्रीय ज्ञानशाला प्रभारी ने आभार व्यक्त किया।

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