खमनोर। मेवाड के आदर्श, महाराणा प्रताप के सहयोगी और आदिवासी समुदाय के प्रेरणास्रोत राणा पूंजा की पावन स्मृति में समीपवर्ती मचींद गांव में बनी आदमकद प्रतिमा प्रशासनिक व विभागीय उपेक्षा की शिकार है। प्रतिमा के हाथ में करीब दो वर्ष से तीर टूटा हुआ है, लेकिन अब तक ठीक नहीं करवाया गया है।
वर्ष 1999 में तत्कालीन राज्यपाल अंशुमानसिंह अनावरित राणा पूंजा की प्रतिमा के दांये हाथ में आदिवासी समुदाय के प्रमुख हथियार के रूप में प्रसिद्ध तीर व बांये हाथ में धनुष था। कुछ समय पूर्व समाजकंटकों ने राणा पूंजा के दांये हाथ का तीर तोड दिया, जिससे अब केवल तीर के पीछे वाला हिस्सा ही रह गया है। ग्रामीण दोला गमेती ने बताया कि इस संबंध में कई बार प्रशासनिक अघिकारियों और जन प्रतिनिघियों को अवगत करवाने के बावजूद आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
कौन थे राणा पूंजामहाराणा प्रताप के सहयोगी राणा पूंजा उदयपुर जिले की झाडोल तहसील के पानरवा गांव के रहने वाले थे। हल्दीघाटी युद्ध के दौरान पूंजा के नेतृत्व में आदिवासी सैन्य दल ने मुगल सेना के छक्के छुडा दिए थे। आज भी प्रतिवर्ष हल्दीघाटी में लगने वाले प्रताप जयंती मेले से एक दिन पूर्व राणा पूंजा स्थल पर भी मेले का आयोजन होता है जिसमें आदिवासी समुदाय उत्साह से शरीक होता है।
यह मामला हमारे अंडर में नहीं आता। हमें पता भी नहीं है, स्थानीय प्रशासन ही बता सकता है।-विकास पण्ड्या, जिला पर्यटन अधिकारी, उदयपुर
दो-तीन साल पहले तीर टूटा था। यह मामला ग्राम पंचायत के अधीन ही आता है। हमने प्रशासन को इसलिए नहीं बताया कि कहीं कोई विवाद न हो जाए या समुदाय में असंतोष न उपज जाए और बात बिगड न जाए, लेकिन अब इसे ठीक करवाने पर ध्यान दिया जाएगा।लक्ष्मीलाल सोनी, सरपंच, मचींद
वर्ष 1999 में तत्कालीन राज्यपाल अंशुमानसिंह अनावरित राणा पूंजा की प्रतिमा के दांये हाथ में आदिवासी समुदाय के प्रमुख हथियार के रूप में प्रसिद्ध तीर व बांये हाथ में धनुष था। कुछ समय पूर्व समाजकंटकों ने राणा पूंजा के दांये हाथ का तीर तोड दिया, जिससे अब केवल तीर के पीछे वाला हिस्सा ही रह गया है। ग्रामीण दोला गमेती ने बताया कि इस संबंध में कई बार प्रशासनिक अघिकारियों और जन प्रतिनिघियों को अवगत करवाने के बावजूद आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
कौन थे राणा पूंजामहाराणा प्रताप के सहयोगी राणा पूंजा उदयपुर जिले की झाडोल तहसील के पानरवा गांव के रहने वाले थे। हल्दीघाटी युद्ध के दौरान पूंजा के नेतृत्व में आदिवासी सैन्य दल ने मुगल सेना के छक्के छुडा दिए थे। आज भी प्रतिवर्ष हल्दीघाटी में लगने वाले प्रताप जयंती मेले से एक दिन पूर्व राणा पूंजा स्थल पर भी मेले का आयोजन होता है जिसमें आदिवासी समुदाय उत्साह से शरीक होता है।
यह मामला हमारे अंडर में नहीं आता। हमें पता भी नहीं है, स्थानीय प्रशासन ही बता सकता है।-विकास पण्ड्या, जिला पर्यटन अधिकारी, उदयपुर
दो-तीन साल पहले तीर टूटा था। यह मामला ग्राम पंचायत के अधीन ही आता है। हमने प्रशासन को इसलिए नहीं बताया कि कहीं कोई विवाद न हो जाए या समुदाय में असंतोष न उपज जाए और बात बिगड न जाए, लेकिन अब इसे ठीक करवाने पर ध्यान दिया जाएगा।लक्ष्मीलाल सोनी, सरपंच, मचींद
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