कुंवारिया। 'यह भैंस दो सौ में दो तो भी नहीं चाहिए..., इसकी आंख में तिल है। उस वाली का वाजिब बोलो...', 'हां, यह ठीक रहेगा। इस बैल
की पीठ पर भंवरी है...' 'मुझे तो ऎसा घोडा चाहिए, जिसके देवमाल हो..., ऎसा घोडा निरोगी रहता है...'।
यह वाक्य इन दिनों कुंवारिया पशु मेला परिसर में खूब सुनने को मिल रहे हैं। दरअसल पशुओं की खरीद-फरोख्त के लिए आने वाले खरीदार पशुओं के
रंग-अंग, अंगों पर उकरी आकृतियां, सींग, बनावट आदि के पारंपरिक तरीके को आज भी खासा महत्व देते हैं। पशु चिकित्सकों की राय के बजाय इन्हें
खानदानी पशु विशेषज्ञों की राय ज्यादा सुहाती है। यही कारण है कि आज भी बैल और भैंसों की खरीद दांत देखकर ही की जाती है।
भैस विक्रेता अमरदान चारण के मुताबिक मेले में अचानक पशुओं की पहचान करना टेढी खीर होता है। सटीक मोल और उम्दा खरीदारी के लिए परंपरागत तरीका
ही कारगर साबित होता है। भैंस की खरीदारी में आंख की स्वच्छता के अलावा थनों के बीच दूरी, दांत, छोटे सींग, थन के आस-पास दाग की पडताल
करते हैं। भूरालाल मोगिया के अनुसार गोलाई लिए सींग वाली भैंस को ज्यादा अच्छा माना जाता है। इसी आधार पर भैंस की उम्र का भी अंदाजा लगाया जाता
है। बैल के विक्रेता बैल के मुंह, खुर, पीठ पर उभरी खांदोल, आंख, सींग आदि के आधार पर कीमत तय करते हैं। बैल विक्रेता गोरू व वजेराम बंजारा के
मुताबिक बैल की पीठ पर भंवरी को शुभ तो सर्पिली रेखा को अशुभ माना जाता है। पांव व खुर सीधे होने पर विके्रता को मुंह मांगा दाम भी मिल जाता है।
घोडे के गले में देवमाल का महत्व
यूं तो घोडो की खरीद में रंग, त्वचा, बालों की भंवरियां, आंख, खुर, पांव आदि पर कीमत का असर रहता है, लेकिन गले में बनी देवमाल को
सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। अश्वपालकों का मानना है कि देवमाल वाले घोडे निरोगी व कुशल होते हैं। सिर पर तिलक होना, दाएं पांव पर खुर से कुछ ऊपर
सफेद रंग होना, नाक का छोटा होना, कान छोटे व खडे होना, पांव सीधे व खुर खडे होना आदि निशानियों को प्राथमिकता दी जाती है। गले में एक भंवरी
व पांवों के मध्य गोम भंवरी को अशुभ माना जाता है।
इनका कहना है
घोडा संवेदनशील पशु होता है। उसमें काफी प्रकार की ऎब व खोट जन्मजात होती है। घोडे की पहचान कुछ घंटों में नहीं हो पाती, इसलिए परंपरागत प्रणाली से
ही गुण-दोषों का पता लगाया जा सकता है। - लालाराम मोंगिया व शैतानसिंह, घोडे के विक्रेता
की पीठ पर भंवरी है...' 'मुझे तो ऎसा घोडा चाहिए, जिसके देवमाल हो..., ऎसा घोडा निरोगी रहता है...'।
यह वाक्य इन दिनों कुंवारिया पशु मेला परिसर में खूब सुनने को मिल रहे हैं। दरअसल पशुओं की खरीद-फरोख्त के लिए आने वाले खरीदार पशुओं के
रंग-अंग, अंगों पर उकरी आकृतियां, सींग, बनावट आदि के पारंपरिक तरीके को आज भी खासा महत्व देते हैं। पशु चिकित्सकों की राय के बजाय इन्हें
खानदानी पशु विशेषज्ञों की राय ज्यादा सुहाती है। यही कारण है कि आज भी बैल और भैंसों की खरीद दांत देखकर ही की जाती है।
भैस विक्रेता अमरदान चारण के मुताबिक मेले में अचानक पशुओं की पहचान करना टेढी खीर होता है। सटीक मोल और उम्दा खरीदारी के लिए परंपरागत तरीका
ही कारगर साबित होता है। भैंस की खरीदारी में आंख की स्वच्छता के अलावा थनों के बीच दूरी, दांत, छोटे सींग, थन के आस-पास दाग की पडताल
करते हैं। भूरालाल मोगिया के अनुसार गोलाई लिए सींग वाली भैंस को ज्यादा अच्छा माना जाता है। इसी आधार पर भैंस की उम्र का भी अंदाजा लगाया जाता
है। बैल के विक्रेता बैल के मुंह, खुर, पीठ पर उभरी खांदोल, आंख, सींग आदि के आधार पर कीमत तय करते हैं। बैल विक्रेता गोरू व वजेराम बंजारा के
मुताबिक बैल की पीठ पर भंवरी को शुभ तो सर्पिली रेखा को अशुभ माना जाता है। पांव व खुर सीधे होने पर विके्रता को मुंह मांगा दाम भी मिल जाता है।
घोडे के गले में देवमाल का महत्व
यूं तो घोडो की खरीद में रंग, त्वचा, बालों की भंवरियां, आंख, खुर, पांव आदि पर कीमत का असर रहता है, लेकिन गले में बनी देवमाल को
सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। अश्वपालकों का मानना है कि देवमाल वाले घोडे निरोगी व कुशल होते हैं। सिर पर तिलक होना, दाएं पांव पर खुर से कुछ ऊपर
सफेद रंग होना, नाक का छोटा होना, कान छोटे व खडे होना, पांव सीधे व खुर खडे होना आदि निशानियों को प्राथमिकता दी जाती है। गले में एक भंवरी
व पांवों के मध्य गोम भंवरी को अशुभ माना जाता है।
इनका कहना है
घोडा संवेदनशील पशु होता है। उसमें काफी प्रकार की ऎब व खोट जन्मजात होती है। घोडे की पहचान कुछ घंटों में नहीं हो पाती, इसलिए परंपरागत प्रणाली से
ही गुण-दोषों का पता लगाया जा सकता है। - लालाराम मोंगिया व शैतानसिंह, घोडे के विक्रेता
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