खमनोर। खूबसूरत, बेमिसाल और बेजोड मृण शिल्प कला मोलेला में आज अपने हाल पर आंसू बहा रही है। हालांकि इस कला ने विदेशों में भी परचम फहराया है। न कोई औजार, न किसी प्रकार का सांचा, बस मृण शिल्प कलाकार की सधी हुई अंगुलियां देखते ही देखते मिट्टी को विभिन्न आकर्षक रूपों में ढाल देती हैं। यह शानदार व लुभावनी मृणशिल्प कला मोलेला गांव की है।
दरअसल मृण शिल्प कलाकार अपनी भावनाओं व कल्पनाओं को मिट्टी के जरिये रूप देने का प्रयास करते हैं, फिर नम मिट्टी से उभरती हैं देव प्रतिमाएं, मानव आकृतियां, खिलौने, बर्तन, हाथी-घोडे व अन्य साज-सज्जा की सामग्री।
उल्लेखनीय है कि कई परिवार चार हजार वर्ष पुरानी अपनी इस परम्परा को महज जीवित रखने के लिए पीढी-दर-पीढी काम करते आ रहे हैं। 700 ईसा पूर्व यह कला यूनान व रोम में पोषित हुई थी। वहीं 19वीं और 20वीं सदी में एशिया के विभिन्न देशों, विशेषकर भारत में इसका विकास हुआ, लेकिन वर्तमान में इस कला को और अघिक आगे बढाने के लिए कलाकारों को संरक्षण व सरकारी स्तर पर किसी भी प्रकार का प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है। कलाकार महज अपने बूते पर इस कला को जिंदा रखने के लिए दिन-रात जुटे हुए हैं।
विदेशी मोहगांव के करीब चालीस कुम्हार परिवार इस कला से जुडे हुए हैं। ये देश-विदेश में अपनी इस कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। यही कारण है कि विदेशी लोगों का भी इस कला के प्रति लगातार मोह बढता जा रहा है। विभिन्न देशों के कलाकार इस गांव में आकर यह कला उत्साह व उमंग के साथ सीखते हैं।
देव प्रतिमाओं का निर्माणलोक मान्यता के अनुसार यहां पर सर्वाघिक प्रतिमाएं देवी-देवताओं की बनती हैं, जिन्हें गुजरात, मालवा, मारवाड और मेवाड के श्रद्धालु धार्मिक अनुष्ठानों के साथ यहां से ले जा कर देवालयों में स्थापित करते हैं। आम जन के लिए यह कठिन और लम्बी प्रक्रिया है, लेकिन यहां के कलाकारों के लिए यह कला सहज और सामान्य सी है। इस कला में पुरूषों के साथ-साथ महिलाएं, युवक व युवतियां भी पारंगत हैं। कच्ची मिट्टी को बारीक व पानी से नम कर आटे की तर गूंधा जाता है, फिर इस मिट्टी को कलाकार महज अंगुलियों के सहारे विभिन्न आकारों में ढालता है और इन आकृतियों को धूप में सुखाया जाता है। बाद में उन्हें आग में तपा कर रंग-रोगन किया जाता है।
सम्मान मिलेयहां के कलाकार राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रपति की ओर से सम्मानित होने के साथ-साथ विभिन्न मंचों पर कई बार सम्मानित हो चुके हैं। यहीं के मोहन टेराकोटा कला केन्द्र के मोहनलाल कुम्हार को राष्ट्रपति पुरस्कार व शिल्प गुरू अवार्ड से नवाजा गया है। सम्मान के साथ यहां के कलाकारों ने फ्रांस, स्पेन, अमरीका, आस्ट्रेलिया आदि देशों में भी अपनी कला का प्रदर्शन किया।
प्रोत्साहन मिले तो बेहतर विकास : मृण शिल्प कला से जुडे मोहनलाल प्रजापत, श्यामलाल, ताराचंद, लोगरलाल, लक्ष्मीलाल, राजेन्द्र प्रजापत, दिनेश आदि ने बताया कि यदि सरकारी स्तर पर इसक कला को संरक्षण व प्रोत्साहन मिले तो कलाकार इस कला को और अघिक ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं।
दरअसल मृण शिल्प कलाकार अपनी भावनाओं व कल्पनाओं को मिट्टी के जरिये रूप देने का प्रयास करते हैं, फिर नम मिट्टी से उभरती हैं देव प्रतिमाएं, मानव आकृतियां, खिलौने, बर्तन, हाथी-घोडे व अन्य साज-सज्जा की सामग्री।
उल्लेखनीय है कि कई परिवार चार हजार वर्ष पुरानी अपनी इस परम्परा को महज जीवित रखने के लिए पीढी-दर-पीढी काम करते आ रहे हैं। 700 ईसा पूर्व यह कला यूनान व रोम में पोषित हुई थी। वहीं 19वीं और 20वीं सदी में एशिया के विभिन्न देशों, विशेषकर भारत में इसका विकास हुआ, लेकिन वर्तमान में इस कला को और अघिक आगे बढाने के लिए कलाकारों को संरक्षण व सरकारी स्तर पर किसी भी प्रकार का प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है। कलाकार महज अपने बूते पर इस कला को जिंदा रखने के लिए दिन-रात जुटे हुए हैं।
विदेशी मोहगांव के करीब चालीस कुम्हार परिवार इस कला से जुडे हुए हैं। ये देश-विदेश में अपनी इस कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। यही कारण है कि विदेशी लोगों का भी इस कला के प्रति लगातार मोह बढता जा रहा है। विभिन्न देशों के कलाकार इस गांव में आकर यह कला उत्साह व उमंग के साथ सीखते हैं।
देव प्रतिमाओं का निर्माणलोक मान्यता के अनुसार यहां पर सर्वाघिक प्रतिमाएं देवी-देवताओं की बनती हैं, जिन्हें गुजरात, मालवा, मारवाड और मेवाड के श्रद्धालु धार्मिक अनुष्ठानों के साथ यहां से ले जा कर देवालयों में स्थापित करते हैं। आम जन के लिए यह कठिन और लम्बी प्रक्रिया है, लेकिन यहां के कलाकारों के लिए यह कला सहज और सामान्य सी है। इस कला में पुरूषों के साथ-साथ महिलाएं, युवक व युवतियां भी पारंगत हैं। कच्ची मिट्टी को बारीक व पानी से नम कर आटे की तर गूंधा जाता है, फिर इस मिट्टी को कलाकार महज अंगुलियों के सहारे विभिन्न आकारों में ढालता है और इन आकृतियों को धूप में सुखाया जाता है। बाद में उन्हें आग में तपा कर रंग-रोगन किया जाता है।
सम्मान मिलेयहां के कलाकार राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रपति की ओर से सम्मानित होने के साथ-साथ विभिन्न मंचों पर कई बार सम्मानित हो चुके हैं। यहीं के मोहन टेराकोटा कला केन्द्र के मोहनलाल कुम्हार को राष्ट्रपति पुरस्कार व शिल्प गुरू अवार्ड से नवाजा गया है। सम्मान के साथ यहां के कलाकारों ने फ्रांस, स्पेन, अमरीका, आस्ट्रेलिया आदि देशों में भी अपनी कला का प्रदर्शन किया।
प्रोत्साहन मिले तो बेहतर विकास : मृण शिल्प कला से जुडे मोहनलाल प्रजापत, श्यामलाल, ताराचंद, लोगरलाल, लक्ष्मीलाल, राजेन्द्र प्रजापत, दिनेश आदि ने बताया कि यदि सरकारी स्तर पर इसक कला को संरक्षण व प्रोत्साहन मिले तो कलाकार इस कला को और अघिक ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं।
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