Monday, July 13, 2009

दीवार पर टंगी थमी हुई घड़ी मानो जिदंगी ठहर गई

राजसमन्द। राजस्थान साहित्यकार परिषद की गोष्ठी रविवार को बड़ारड़ा स्थित शिवशक्ति काठियावाड़ी हॉल में परिषद के अध्यक्ष हमीद शेख की अध्यक्षता में हुई।
गोष्ठी में कमर मेवाड़ी ने कथादेश पत्रिका में प्रणय कृष्ण द्वारा लिखित रचना फिरोज सयद आ रहे है वापस के माध्यम से साहित्यकार के संघर्षमय जीवन को पढ़कर सुनाया। माधव नागदा ने अपनी लघु कहानी खप्पचियां के माध्यम से उच्च वर्ग के वर्मा व श्रीवास्तव एक्सीडेंट को उत्सव में बदल देने जैसे भावों को व्यक्त किया। राधेश्याम सरावगी मसूदिया ने समकालिन परिवेश पर व्यंग्य करने वाली रचना जहां बिकती है रोटी कपड़ा पर कहा है सुनाकर श्रोताओं की दाद बटोरी। एमडी कनेरिया ने दीवार पर टंगी थमी हुई घड़ी अच्छी नहीं लगती जैसे अच्छा नहीं लगता किसी की जिंदगी का थम जाना के माध्यम से चलने का नाम ही जिंदगी है भावों को व्यक्त किया।
ईश्वर शर्मा ने अपनी रचना शराब और शिक्षा के माध्यम से शराब वही शाकी वही बार-बार बोतल बदलने से क्या होता है, शिक्षा क्या सुनाकर प्रश्न चिह्न खड़ा किया। अफजल जी अफजल ने गीत तुम्हारी कहानी में बांकपन है जिस तरह से सुनाई अपनी कहानी उस तरह न सुनाना मेरी कहानी सुनाकर गोष्ठी में रसमय रंग जमाया। जवान सिंह सिसोदिया ने अपनी लघुकथा जेब कट गई के माध्यम से आम आदमी के साथ पुलिस द्वारा होने वाला दर्ुव्यवहार को स्पष्ट किया। हमीद शेख ने अपनी गजल इक तबस्सुम जुल्मते गम में यूं उछाला जाय, दूर तक जिस्त की राहों में उजाला जाय सुनाकर भाव विभोर कर दिया। मनोहर सिंह आशिया ने सरकारी और गैर सरकारी विद्यालयों की भर्ती पर व्यंग्य करते हुए बालक की भर्ती परीक्षा देते मां-बाप सुनाया। नगेन्द्र मेहता ने समकालीन परिवेश को आगे शब्दों में पिरोते हुए नक्काल बना आदमी जेसे दोहे सुनाकर गदगद किया। भंवर बोस ने अपनी रचना झील को प्रणाम के माध्यम से राजसमंद झील के सौंदर्य को अभिव्यक्ति दी। संयोजन राधेश्याम सरावगी मसूदिया ने किया गया।

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