Sunday, February 14, 2010

मारवाड-मावली रेलमार्ग उपेक्षा व राजनीतिक दबाव के अभाव में बदहाली के हालात में

देवगढ। पश्चिमी रेलवे का मारवाड-मावली रेलमार्ग रेलवे अघिकारियों की उपेक्षा व राजनीतिक दबाव के अभाव में बदहाली के हालात में पहुंच चुका है। अस्सी के दशक तक यह रेलमार्ग खूब फला फूल था। तब प्रतिदिन हजारों यात्री इस रेलमार्ग पर यात्रा करते थे, लेकिन आज यह मार्ग गर्त में समाता जा रहा है।
एक घंटे में चलती है 25 किमी
सन 1932-33 में निर्मित इस खण्ड के मारवाड से मावली तक 153 किलोमीटर के फासले को तय करने में करीब 6 घंटे से भी अघिक का समय लगता है। इसकी औसत 25 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार है। ऎसे में आज हर यात्री जल्दी से जल्दी पंहुचने के चक्कर मे अन्य साधनों का उपयोग करने लगा है, जिससे इस मार्ग की यात्री गाडियों में कई बार सौ से भी कम सवारियां होती हैं।
बंद हुए कई स्टेशन
नब्बे के दशक में इस मार्ग पर 13 में से 3 रेलवे स्टेशनों कुंवारिया, लावा सरदारगढ व कुंवाथल को पूर्ण रूप से बन्द कर कार्यालयों को सील कर दिया गया, जबकि देवगढ रेलवे स्टेशन को फ्लैग स्टेशन बनाकर स्टेशन मास्टर के पद को तोडकर बुंकिंग प्रभारी लगा दिया गया। इन स्टेशनों की रेल पटरियों की साइडिंग हटाकर दुर्गति कर दी गई है। पहले यहां तीन-तीन रेल साइडिंग पटरियां थीं, जिसमें से दो को हटाकर एक ही कर दी है, जिनसे इन स्टेशनो पर रेलगाडियो की क्र ॉसिंग नहीं हो सकती है। मावली से गाडी छूटने के बाद नाथद्वारा, कांकरोली, आमेट, कामलीघाट, गौरमघाट, फुलाद में ही क्रॉसिंग संभव है।
ब्रॉडगेज की दरकार
मावली से नाथद्वारा तक ब्रॉडगेज बनाई जा रही है। इससे आगे करीब 130 किलोमीटर का मार्ग ही ब्रॉडगेज नहीं है, अगर इसे भी ब्रॉडगेज बना दिया जाये तो जोधपुर का उदयपुर, चित्तौड व मुम्बई से सीधा सम्पर्क हो जाएगा। दूसरी ओर मावली से बडी सादडी रेलमार्ग को मावली-मारवाड रेल लाइन से जोड दिया जाए तो आगे नीमच तक के लिए यह मार्ग सबसे सुगम व छोटा होगा।
खण्डहर हुए क्वाटर्स और गोदाम
अस्सी के दशक में रेल प्रशासन ने इस खण्ड से मालगाडियों का आवागमन भी बन्द कर दिया, जिससे आमेट, कुंवारिया, लावा सरदारगढ व कांकरोली जैसे कस्बे में निकलने वाले मार्बल की ढुलाई नहीं हो सकती, मालगाडियां बन्द कर दिए जाने से इन स्टेशनो के बडे-बडे माल गोदाम की छतो के परतो को हटाकर बाहर ताला लगा दिया गया। ऎसी दशा में माल गोदाम खण्डहर होते जा रहे हैं। इन स्टेशनों के बन्द कर दिए जाने अथवा फ्लैग स्टेशन कर देने के बाद साठ से भी अघिक सरकारी क्वार्टर खण्डहर हो रहे हैं और अनैतिक कार्यो के अड्डे बन गए हैं।
गांव में छाई वीरानी
रेलवे के नाम से आबाद रहे कामलीघाट रेलवे स्टेशन से लोको एवं अन्य विभाग हटा दिए जाने से इस गांव में विरानी छा सी गई है। जहां सैकडों रेलवे कर्मचारी कार्य करते थे आज वहां कुछ नहीं है। क्षेत्र के पचासो रेलवे क्वाटर्स, गेस्ट हाउस एवं लोको शैड जहां कभी चार-चार भाप के इंजन ठीक किए जाते थे, आज धुलधुसरित हो रहे हैं। रामदेवरा मेले के समय मालवा क्षेत्र के हजारो तीर्थ यात्री दर्शन करने रामदेवरा मेले जाते हैं। उस वक्त इस मार्ग की रेलगाडियों के अंदर के साथ छतों और यहां तक कि इंजन तक पर यात्रियो के लिए पैर रखने की भी जगह नहीं होती है, लेकिन उसके बावजूद आज तक इस क्षेत्र के विकास के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई।

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