Tuesday, February 16, 2010

बिना किताब, हुई पढाई

राजसमंद। जिले में आठवीं बोर्ड के करीब साढे 18 हजार से अघिक विद्यार्थियों की वार्षिक कसौटी को लेकर प्रारंभिक शिक्षा विभाग ने युद्ध स्तर पर तैयारियां कर शुरू कर दी हैं, लेकिन इन बच्चों ने सत्र के दौरान क्या पढा, कैसे सीखा, क्या लिखेंगे, इस दिशा में सोचने की शायद किसी को नहीं पडी है। यही कारण है कि कई माह पूर्व पाठ्य पुस्तक मण्डल को भेजे गए मांग पत्र पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है।
सरकारी विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों के लिए सरकार ने एक नियम बना रखा है कि जितने विद्यार्थी विद्यालय में नामांकन कराते हैं, उनकी तुलना में सत्र के दौरान आधी पुस्तकें ही भेजी जाएंगी। पचास फीसदी के इस खेल का सीधा खामियाजा विद्यार्थियों को भुगतना पड रहा है। दिलचस्प पहलू यह कि इस नियम की पालना कितनी हो रही है, इसकी खैर खबर लेने वाला भी कोई नहीं है। स्थिति यह है कि जिले के 15000 से अघिक विद्यार्थियों में से कितनों के पास किताबें पहुंचीं, यह भी पुख्ता जानकारी किसी के पास नहीं है।
कडी दर कडी चूकविद्यार्थियों को किताबें उपलब्ध कराने का पहला जिम्मा संबंघित संस्था प्रधानों का है। संस्था प्रधान मांग पत्र बनाकर संबंघित नोडल केन्द्राध्यक्षों तक भिजवाते हैं। यहां से जानकारी खण्ड शिक्षा अघिकारी कार्यालय पहुंचती है। कार्यालय से जानकारी प्रारंभिक शिक्षा अघिकारी कार्यालय तथा वहां से पाठ्य पुस्तक मण्डल को भेजी जाती है। इस उबाऊ तथा लम्बी प्रक्रिया के चलते मांग पत्र कई बार मार्ग में ही कहीं 'खो' जाते हैं तो कई बार दफ्तर की फाइलों में अटक जाते हैं।
10 हजार कम आई पुस्तकेंशिक्षा विभाग सूत्रों ने बताया कि आरंभ में पाठ्य पुस्तक मण्डल को 1 लाख 34 हजार पुस्तकों के लिए मांग पत्र भेजा गया, लेकिन वहां से इस मांग पत्र में पहले ही 10 फीसदी की कमी कर दी गई और मात्र 1 लाख 24 हजार सेट भेजे गए। इधर, प्रारंभिक शिक्षा विभाग ने आगामी शिक्षण सत्र के लिए भी अभी से मांग पत्र मंगाने शुरू कर दिए हैं।

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