कानून मंत्रालय ने तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी द्वारा अपने साथी चुनाव आयुक्त नवीन चावला को पद से हटाने के लिए राष्ट्रपति को लिखा गया पत्र जारी किया है। हालांकि, राष्ट्रपति भवन ने इस दस्तावेज को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था। सूचना के अधिकार कानून के तहत कानून मंत्रालय में अपील पंचाट ने राजस्थान के भीलड़वाड़ा निवासी एस. एस. रानावत की अपील को स्वीकार कर लिया, जिन्होंने पिछले साल जनवरी में गोपालस्वामी द्वारा की गई सिफारिशों को सार्वजनिक किए जाने की मांग की थी। 93 पेजों की रिपोर्ट में गोपालस्वामी ने चावला की ओर से 'पक्षपातपूर्ण व्यवहार ' किए जाने ने के कई उदाहरण गिनाए थे जो निष्पक्षता का अभाव दर्शाते थे। बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी और 179 सांसदों द्वारा दाखिल गई गई एक याचिका पर कार्रवाई करते हुए तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा था कि संविधान के तहत उन्हें चावला को हटाने की सिफारिश करने का अधिकार है। सांसदों ने चावला के खिलाफ पक्षपात के आरोप लगाए थे। सरकार ने हालांकि सिफारिश को खारिज कर दिया और चावला को मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त कर दिया। गोपालस्वामी ने 16 जनवरी 2009 के पत्र में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 324 (5) के प्रावधानों के तहत मुझे दिए गए अधिकारों के तहत मैं श्री नवीन बी. चावला को चुनाव आयुक्त के पद से हटाने की सिफारिश करता हूं। उन्होंने 12 मिसालों का जिक्र करते हुए कहा कि इन पर अलग-अलग विचार करने से चावला के राजनीतिक पक्षपात के संकेत मिलते हैं। गोपालस्वामी ने कहा कि इन मामलों से प्रतीत होता है कि वह एक पार्टी के साथ लगातार संपर्क में हैं जिससे उनकी राजनीतिक निष्पक्षता को लेकर गंभीर संदेह पैदा होता है। इससे आगे, उनमें न सिर्फ राजनीतिक निष्पक्षता की कमी प्रतीत होती है बल्कि चुनाव आयुक्त डॉ. कुरैशी को प्रभावित करने का उनका प्रयास और भी घातक था। गोपालस्वामी ने कहा कि कई मौकों पर कुरैशी ने कहा था कि उन पर दबाव था। इस क्रम में उन्होंने कर्नाटक चुनाव का भी जिक्र किया था। कुरैशी ने उन्हें चावला का वह बयान बताया था जिसमें चावला ने कहा था, 'वे आपसे इसलिए नाराज नहीं हैं कि चुनाव आयोग की ओर से सोनिया गांधी के जन्मदिन के मौके पर नोटिस (मौत का सौदागर संबंधी बयान पर नोटिस जारी किए जाने के संदर्भ में) जारी करने में वह सक्रिय थे, बल्कि वह इसलिए नाराज हैं कि हिमाचल प्रदेश में चुनाव की तारीख बढ़ाने में आपने मुख्य चुनाव आयुक्त का पक्ष लिया। 2007 में उत्तर प्रदेश चुनावों की घोषणा के मामले में चावला राष्ट्रपति शासन की संभावना के बीच घोषणा टालने के पक्ष में थे और कांग्रेस भी ऐसी ही मांग कर रही थी। यह मामला तत्कालीन राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के संज्ञान में लाया गया था।
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