राजसमंद । 'हमारा आशीर्वाद आपके साथ है। आप सभी अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हों और विद्यालय व अपने माता-पिता का नाम रोशन करें।' इन आशीर्वचन के साथ विद्यालयों में दसवीं व बारहवीं बोर्ड में प्रविष्ट होने वाले विद्यार्थियों को विदाई देने का सिलसिला शुरू हो गया है लेकिन बच्चों के अभिभावक मात्र शुभकामनाओं के सहारे नाम रोशन करने की बात पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि बच्चों को सत्र में अब तक 48 हजार किताबें नहीं मिल पाई। ऎसे में बच्चे पूरी पढाई तक नहीं कर पाए।
सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थियों को सरकार की ओर से पाठ्यपुस्तकें नि:शुल्क देने का प्रावधान है। माध्यमिक शिक्षा विभाग ने सत्र आरंभ के साथ जुलाई में पहली खेप विद्यालयों को भेज दी, तब भी मांग और आपूर्ति का अनुपात ध्यान नहीं रखा गया था। अगस्त के बाद माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने स्कूलों में पाठ्यपुस्तकें भेजी ही नहीं।
ऎसे में 18 मार्च से शुरू होने वाली वार्षिक परीक्षा की नैया कैसे पार करेंगेक् विद्यार्थी ही जानें। नामांकन की तुलना में आधी किताबें मुहैया कराने के सरकारी नियम के चलते सत्रारंभ में ही पाठ्यक्रम बदलने की 'अफवाह' के चलते नई पुस्तकों का प्रकाशन नहीं किया गया। ऎसे में बोर्ड ने उपलब्ध पुस्तकें चार खेप में विद्यालयों को उपलब्ध कराई, लेकिन यह तादाद मांग की तुलना में आधी ही थी। यह खेप अगस्त में ही आपूर्ति कर दी गई थी।
मांग जारी है
सितम्बर में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने राज्य के सभी जिला शिक्षा अघिकारियों से अतिरिक्त मांग की सूचनाएं तो मंगवाई, लेकिन मांग पत्रों पर कोई गौर नहीं किया। नतीजतन अर्द्धवार्षिक परीक्षाओं के बाद अब सिर पर वार्षिक परीक्षा की तलवार भी लटक गई, लेकिन पुस्तकों का अता-पता नहीं है।
68 स्कूलों में एक भी किताब नहीं
जिले में उ"ा माध्यमिक स्तर के कुल 269 विद्यालय संचालित हैं। इनमें से 221 सरकारी व शेष 48 गैर सरकारी विद्यालय हैं। गत वर्ष 68 उ"ा प्राथमिक स्कूलों को माध्यमिक में क्रमोन्नत किया गया, लेकिन पुस्तकों की आपूर्ति के मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। यही कारण है कि सितम्बर से अब तक माध्यमिक शिक्षा कार्यालय की ओर से माध्यमिक शिक्षा बोर्ड सचिव को चार पत्र मांग पत्र भेजने के बावजूद पुस्तकों की आपूर्ति नहीं की गई।
इनका कहना है
शिक्षण सत्र बीतने तक माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की ओर से पुस्तकें उपलब्ध नहीं कराना व्यवस्थाओं में भारी चूक को दर्शाता है। यह अनदेखी विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड है।प्रभु गिरि गोस्वामी, पूर्व अध्यक्ष, राशिसं (राष्ट्रीय)
सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थियों को सरकार की ओर से पाठ्यपुस्तकें नि:शुल्क देने का प्रावधान है। माध्यमिक शिक्षा विभाग ने सत्र आरंभ के साथ जुलाई में पहली खेप विद्यालयों को भेज दी, तब भी मांग और आपूर्ति का अनुपात ध्यान नहीं रखा गया था। अगस्त के बाद माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने स्कूलों में पाठ्यपुस्तकें भेजी ही नहीं।
ऎसे में 18 मार्च से शुरू होने वाली वार्षिक परीक्षा की नैया कैसे पार करेंगेक् विद्यार्थी ही जानें। नामांकन की तुलना में आधी किताबें मुहैया कराने के सरकारी नियम के चलते सत्रारंभ में ही पाठ्यक्रम बदलने की 'अफवाह' के चलते नई पुस्तकों का प्रकाशन नहीं किया गया। ऎसे में बोर्ड ने उपलब्ध पुस्तकें चार खेप में विद्यालयों को उपलब्ध कराई, लेकिन यह तादाद मांग की तुलना में आधी ही थी। यह खेप अगस्त में ही आपूर्ति कर दी गई थी।
मांग जारी है
सितम्बर में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने राज्य के सभी जिला शिक्षा अघिकारियों से अतिरिक्त मांग की सूचनाएं तो मंगवाई, लेकिन मांग पत्रों पर कोई गौर नहीं किया। नतीजतन अर्द्धवार्षिक परीक्षाओं के बाद अब सिर पर वार्षिक परीक्षा की तलवार भी लटक गई, लेकिन पुस्तकों का अता-पता नहीं है।
68 स्कूलों में एक भी किताब नहीं
जिले में उ"ा माध्यमिक स्तर के कुल 269 विद्यालय संचालित हैं। इनमें से 221 सरकारी व शेष 48 गैर सरकारी विद्यालय हैं। गत वर्ष 68 उ"ा प्राथमिक स्कूलों को माध्यमिक में क्रमोन्नत किया गया, लेकिन पुस्तकों की आपूर्ति के मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। यही कारण है कि सितम्बर से अब तक माध्यमिक शिक्षा कार्यालय की ओर से माध्यमिक शिक्षा बोर्ड सचिव को चार पत्र मांग पत्र भेजने के बावजूद पुस्तकों की आपूर्ति नहीं की गई।
इनका कहना है
शिक्षण सत्र बीतने तक माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की ओर से पुस्तकें उपलब्ध नहीं कराना व्यवस्थाओं में भारी चूक को दर्शाता है। यह अनदेखी विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड है।प्रभु गिरि गोस्वामी, पूर्व अध्यक्ष, राशिसं (राष्ट्रीय)
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