राजसमन्द । राय में सत्ता परिवर्तन होने के बाद उत्साह से लबरेज काग्रेस कार्यकर्ताआें की नजरें अब जिले में चुनिन्दा भाजपा प्रतिनिधियो की कुर्सी पर लगी है।
राजसमन्द जिला प्रमुख के चुनाव में आंकडो की गणित से काफी दूर चल रही कांग्रेस ने बाजी पलट दी और भाजपा से जिला प्रमुख की सीट छीन ली। भाजपा के 15 और कांग्रेस के नौ सदस्य होने के बावजूद कांग्रेस की जीत ने राजस्थान में कांग्रेस की सरकार आने की उपस्थिति दर्ज करा दी। भाजपा के सदस्यों ने क्रोस वोटिंग की। जिला परिषद के बाद अब कांग्रेस के नेताआें की नजरें राजसमन्द नगरपालिका के भाजपा बोर्ड पर लगी है। कांग्रेस पार्षद एवं पालिका में प्रतिपक्ष नेता चुन्नीलाल पंचोली तो पिछले तीन माह से पालिका में कराए गए विकास, निर्माण कार्यों की जांच की मांग कर रहे हैं और सूचना के अधिकार कानून के तहत कराए गए कार्यों की सत्यप्रतिलिपियां ले रहे हैं यहीं नहीं पिछले दिनाें वह कुछ कांग्रेसी पार्षदों को साथ लेकर जयपुर भी गए तथा स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल से मुलाकात कर पालिकाध्यक्ष को हटाने का अनुरोध किया।
कांग्रेस नेताआें को पता है कि अविश्वास प्रस्ताव के जरिये चेयरमेन अशोक रांका को हटाना मुश्किल ही नहीं असम्भव है इसलिए उनका पूरा प्रयास है कि अनियमितताआें के मामले में सरकार उन्हें बर्खास्त कर दे और अध्यक्ष के बाद उपाध्यक्ष जो भी भाजपा के ही है वो कार्यवाहक के रूप में कार्यभार सम्भाले उससे पूर्व ही सरकार किसी कांग्रेस पार्षद को मनोनित कर दे।
इधर पार्षदाें की संख्या बराबर 15 होने के बाद गोटी से हुई हार जीत के फैसले में मुकद्दर का सिकन्दर रहे युवा चुयरमेन अशोक रांका भी कांग्रेस नेताआें की हर हलचल पर निगाहें रखे है तथा कानूनी रूप से अपना पक्ष मजबूत करने के लिए आवश्यक तैयारियां भी कर ली है। हालांकि गणगौर मेले में हुए भुगतान तथा एक निर्माण कार्य की जांच में जिला कलक्टर ने अनियमितता होने की पुष्टि की है जिससे कांग्रेस पार्षदाें के हौंसले बुलन्द हुए है। लेकिन किसी चेयरमेन को बर्खास्त करने के लिए यह कारण पर्याप्त नहीं माने जा रहे हैं वहीं कई मामलाें में चेयरमेंन से अधिक जिम्मेदारी पालिका आयुक्त की बनती है। वहीं चेयरमेन द्वारा प्रत्येक कागज पर हस्ताक्षर करने से पूर्व नियमानुसार कार्यवाही की जाए लिखा गया है इसलिए अनियमितता होने पर संबंधित लिपिक और आयुक्त की जिम्मेदारी अधिक हो जाती है।
पूर्व में जिले के देवगढ नगरपालिकाध्यक्ष दामोदर नराणिया को भी तत्कालीन भाजपा सरकार ने बर्खास्त कर दिया था लेकिन नराणिया राजस्थान उच्च न्यायालय से स्थगन आदेश ले आए। जिससे सरकार की किर किरी हो गयी थी। इसलिए ठोस कारण नहीं मिलने से राजसमन्द पालिका चेयरमेन के बारे में स्वायत्त शासन विभाग कोई निर्णय नहीं कर पा रहा है। बहरहाल पालिकाध्यक्ष की कुर्सी की जंग में भाजपा या कांग्रेस किसकी जीत होगी यह तो भविष्य के गर्त में है, लेकिन चेयरमेन हटाओ अभियान के अगुआ कांग्रेस पार्षद का चेयरमेन बनना भी मुमकिन नहीं है।
राजसमन्द जिला प्रमुख के चुनाव में आंकडो की गणित से काफी दूर चल रही कांग्रेस ने बाजी पलट दी और भाजपा से जिला प्रमुख की सीट छीन ली। भाजपा के 15 और कांग्रेस के नौ सदस्य होने के बावजूद कांग्रेस की जीत ने राजस्थान में कांग्रेस की सरकार आने की उपस्थिति दर्ज करा दी। भाजपा के सदस्यों ने क्रोस वोटिंग की। जिला परिषद के बाद अब कांग्रेस के नेताआें की नजरें राजसमन्द नगरपालिका के भाजपा बोर्ड पर लगी है। कांग्रेस पार्षद एवं पालिका में प्रतिपक्ष नेता चुन्नीलाल पंचोली तो पिछले तीन माह से पालिका में कराए गए विकास, निर्माण कार्यों की जांच की मांग कर रहे हैं और सूचना के अधिकार कानून के तहत कराए गए कार्यों की सत्यप्रतिलिपियां ले रहे हैं यहीं नहीं पिछले दिनाें वह कुछ कांग्रेसी पार्षदों को साथ लेकर जयपुर भी गए तथा स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल से मुलाकात कर पालिकाध्यक्ष को हटाने का अनुरोध किया।
कांग्रेस नेताआें को पता है कि अविश्वास प्रस्ताव के जरिये चेयरमेन अशोक रांका को हटाना मुश्किल ही नहीं असम्भव है इसलिए उनका पूरा प्रयास है कि अनियमितताआें के मामले में सरकार उन्हें बर्खास्त कर दे और अध्यक्ष के बाद उपाध्यक्ष जो भी भाजपा के ही है वो कार्यवाहक के रूप में कार्यभार सम्भाले उससे पूर्व ही सरकार किसी कांग्रेस पार्षद को मनोनित कर दे।
इधर पार्षदाें की संख्या बराबर 15 होने के बाद गोटी से हुई हार जीत के फैसले में मुकद्दर का सिकन्दर रहे युवा चुयरमेन अशोक रांका भी कांग्रेस नेताआें की हर हलचल पर निगाहें रखे है तथा कानूनी रूप से अपना पक्ष मजबूत करने के लिए आवश्यक तैयारियां भी कर ली है। हालांकि गणगौर मेले में हुए भुगतान तथा एक निर्माण कार्य की जांच में जिला कलक्टर ने अनियमितता होने की पुष्टि की है जिससे कांग्रेस पार्षदाें के हौंसले बुलन्द हुए है। लेकिन किसी चेयरमेन को बर्खास्त करने के लिए यह कारण पर्याप्त नहीं माने जा रहे हैं वहीं कई मामलाें में चेयरमेंन से अधिक जिम्मेदारी पालिका आयुक्त की बनती है। वहीं चेयरमेन द्वारा प्रत्येक कागज पर हस्ताक्षर करने से पूर्व नियमानुसार कार्यवाही की जाए लिखा गया है इसलिए अनियमितता होने पर संबंधित लिपिक और आयुक्त की जिम्मेदारी अधिक हो जाती है।
पूर्व में जिले के देवगढ नगरपालिकाध्यक्ष दामोदर नराणिया को भी तत्कालीन भाजपा सरकार ने बर्खास्त कर दिया था लेकिन नराणिया राजस्थान उच्च न्यायालय से स्थगन आदेश ले आए। जिससे सरकार की किर किरी हो गयी थी। इसलिए ठोस कारण नहीं मिलने से राजसमन्द पालिका चेयरमेन के बारे में स्वायत्त शासन विभाग कोई निर्णय नहीं कर पा रहा है। बहरहाल पालिकाध्यक्ष की कुर्सी की जंग में भाजपा या कांग्रेस किसकी जीत होगी यह तो भविष्य के गर्त में है, लेकिन चेयरमेन हटाओ अभियान के अगुआ कांग्रेस पार्षद का चेयरमेन बनना भी मुमकिन नहीं है।
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