राजसमन्द। राजसमंद जिला मुख्यालय के समीप में स्थित कुंवारिया कस्बे के रावलीपोल के दक्षिण में अरावली की उपत्यकाओं की गोद में बना किला कभी काफी आबाद था पर वर्तमान में लगातार उपेक्षा व अनदेखी के कारण यह किला भग्नावशेषो में तब्दील हो रहा है अगर समय रहते सुध नही ली गई तो आने वाले समय में यह नाम मात्र का किला बन कर रह जाएगा ।
जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर दुर काकरोली - भीलवाड़ा राजमार्ग पर बसे कुंवारिया कस्बे में किले का निर्माण वर्ष 1698 में डोडिया राजपुत के वंशज ने कराया था। पुरातात्विक महत्व के पत्र के मुताबिक इसका निर्माण बेशाख बिद तीज सोमवार विक्रम संवत 1767 में कुंवारिया के प्रथम शासक ठाकुर नवलसिह के जेष्ठï पुत्र हठीसिंह के नेर्तत्व में प्रधान शाह छीतर पगारिया की देखरेख में कारिगर गजधर सोमपुरा आदि ने किया । कस्बे के बुजुर्गो के अनुसार तीन चार दशक पूर्व तक यहा निर्मित कारागृह , जनाना महल ,कमरे व परकोटा काफी बेहतर स्थिती में थे जिन्हे कतिपय लोगो ने अपनी इच्छानुसार परिवर्तन करके क्षतिग्रस्त कर दिया है ।
किले के दक्षिण भाग में परकोटे की मजबुत व बेहतर दीवार जो 30 -40 फीट उची व चार पांच फीट चोडी थी उसे तोड दिया गया । आज यह दीवार आगे से आगे कमजोर होती जारही है । किले के बाहरी दीवार गत वर्षाकाल के दोरान ढह चुकि है जिससे कई पत्थर इधर उधर बिखर गए है जिन्है भी लोगो ने नही छोडा । किले पत्थरो के बारे में आमजन में यह भी अवधारणा है कि किले के पत्थरो को चुरा कर निजी कार्य में उपयोग लिया जाता है तो वहा पर शांति व सुकुन की कमी रहती है । किले के भीतर पानी का एक कुण्ड बना हुआ है जिसमें वर्ष पर्यन्त पानी भरा रहता है पुराने समय में इस किले में रहने वाले लोग इसी कुण्ड से के पानी को उपयोग देनिक कार्यो के लिए करते थे । वर्तमान में कुण्ड में काफी पत्थर व मिटटी भरी हुई है । किले के एक कमरे में डोडिया वंश की कुलदेवी हिगलाज माता व चुण्डावत वंश की कुलदेवी बाणमाता की प्रतिमाए स्थापित है । किले के मध्य में चबुतरे पर मंदिर बना हुआ है जिसका कुछ वर्ष पहले गढ़ कालिका शक्तिधाम नामक एक संस्था ने जन सहयोग से जीर्णोद्घार कराया था परन्तु वर्तमान में रख रखाव के अभाव में यह पुन: गिरने के कगार पर है ।
किले के परकोटे में अगे्रजी बबुल व कटिली झाडिय़ों की भरमार है मोसम की मार व सरकारी अनदेखी से किले की दीवारे कमजोर होती जारही है । किले के अंदर विभिन्न ताको,परेण्डियों,आल्यों व दीवारो में धन गढा होने के लालच में लोगो ने खोद दिया जिसमें धन तो मिला या नही इसकी जानकारी नही है पर किले का काफी नुकसान हुआ है । किले केअंदर भी लोगो ने विभिन्न नाम व इबारते लिख रखी है जो किले का बदरंग कर रही है । वर्तमान में यह किला हर और से उपेक्षित रहने से आवारा पशुओ की आरामगाह बना हुआ है ।
कस्बे के प्रबुद्घ नागरिको ने बताया कि एक और सरकार व प्रशासन ऐतिहासिक स्थलो के सरक्षण के लिए वर्ष प्रर्यन्त तरह तरह की योजनाओं की क्रियान्विति कर रही है वही इस किले के प्रति उपेक्षा बरती जारही है जो सरासर गलत है । कस्बे के कार्यकर्ता रतनलाल खटीक, प्रवीण पीपाडा, मुकेश शर्मा, सुखदेव यादव, अशोक गोयल, किशनलाल खण्डेलवाल आदि ने भी कुंवारिया किले को आवश्यक सरक्षण देने की मांग की है ।
जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर दुर काकरोली - भीलवाड़ा राजमार्ग पर बसे कुंवारिया कस्बे में किले का निर्माण वर्ष 1698 में डोडिया राजपुत के वंशज ने कराया था। पुरातात्विक महत्व के पत्र के मुताबिक इसका निर्माण बेशाख बिद तीज सोमवार विक्रम संवत 1767 में कुंवारिया के प्रथम शासक ठाकुर नवलसिह के जेष्ठï पुत्र हठीसिंह के नेर्तत्व में प्रधान शाह छीतर पगारिया की देखरेख में कारिगर गजधर सोमपुरा आदि ने किया । कस्बे के बुजुर्गो के अनुसार तीन चार दशक पूर्व तक यहा निर्मित कारागृह , जनाना महल ,कमरे व परकोटा काफी बेहतर स्थिती में थे जिन्हे कतिपय लोगो ने अपनी इच्छानुसार परिवर्तन करके क्षतिग्रस्त कर दिया है ।
किले के दक्षिण भाग में परकोटे की मजबुत व बेहतर दीवार जो 30 -40 फीट उची व चार पांच फीट चोडी थी उसे तोड दिया गया । आज यह दीवार आगे से आगे कमजोर होती जारही है । किले के बाहरी दीवार गत वर्षाकाल के दोरान ढह चुकि है जिससे कई पत्थर इधर उधर बिखर गए है जिन्है भी लोगो ने नही छोडा । किले पत्थरो के बारे में आमजन में यह भी अवधारणा है कि किले के पत्थरो को चुरा कर निजी कार्य में उपयोग लिया जाता है तो वहा पर शांति व सुकुन की कमी रहती है । किले के भीतर पानी का एक कुण्ड बना हुआ है जिसमें वर्ष पर्यन्त पानी भरा रहता है पुराने समय में इस किले में रहने वाले लोग इसी कुण्ड से के पानी को उपयोग देनिक कार्यो के लिए करते थे । वर्तमान में कुण्ड में काफी पत्थर व मिटटी भरी हुई है । किले के एक कमरे में डोडिया वंश की कुलदेवी हिगलाज माता व चुण्डावत वंश की कुलदेवी बाणमाता की प्रतिमाए स्थापित है । किले के मध्य में चबुतरे पर मंदिर बना हुआ है जिसका कुछ वर्ष पहले गढ़ कालिका शक्तिधाम नामक एक संस्था ने जन सहयोग से जीर्णोद्घार कराया था परन्तु वर्तमान में रख रखाव के अभाव में यह पुन: गिरने के कगार पर है ।
किले के परकोटे में अगे्रजी बबुल व कटिली झाडिय़ों की भरमार है मोसम की मार व सरकारी अनदेखी से किले की दीवारे कमजोर होती जारही है । किले के अंदर विभिन्न ताको,परेण्डियों,आल्यों व दीवारो में धन गढा होने के लालच में लोगो ने खोद दिया जिसमें धन तो मिला या नही इसकी जानकारी नही है पर किले का काफी नुकसान हुआ है । किले केअंदर भी लोगो ने विभिन्न नाम व इबारते लिख रखी है जो किले का बदरंग कर रही है । वर्तमान में यह किला हर और से उपेक्षित रहने से आवारा पशुओ की आरामगाह बना हुआ है ।
कस्बे के प्रबुद्घ नागरिको ने बताया कि एक और सरकार व प्रशासन ऐतिहासिक स्थलो के सरक्षण के लिए वर्ष प्रर्यन्त तरह तरह की योजनाओं की क्रियान्विति कर रही है वही इस किले के प्रति उपेक्षा बरती जारही है जो सरासर गलत है । कस्बे के कार्यकर्ता रतनलाल खटीक, प्रवीण पीपाडा, मुकेश शर्मा, सुखदेव यादव, अशोक गोयल, किशनलाल खण्डेलवाल आदि ने भी कुंवारिया किले को आवश्यक सरक्षण देने की मांग की है ।
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