राजसमंद।किताबों में आंखे गडाए बैठी लडकियां एकाएक तब सिहर उठती हैं, जब खिडकी से हवा का कोई झोंका क्रंदन करता कमरे में घुस आता है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के भीलवाडा रोड स्थित डॉ.भीमराव अंबेडकर अनुसूचित जाति एवं जनजाति कन्या छात्रावास में रहने वाली इन छात्राओं के उस दिन की रात दहशत में गुजरती है।छात्रावास के ठीक पिछवाडे श्मशान में चिताएं जलती हैं। आए दिन का यह मंजर छात्राओं को बेचैन कर देता है। जो पढा उसे भूलकर वे कहीं ओर खो जाती हैं।अनुसूचित जाति-जनजाति कन्या छात्रावास 12 वर्ष पुराना है । जहां जिले के दूर-दराज इलाकों की बालिकाएं भविष्य के सपने बुनती हैं। वर्तमान में यहां 20 लडकियां हैं। इनमें कक्षा छह की तीन, सात की दो, नौवीं की दस, दसवीं की तीन तथा बारहवीं की दो हैं।कफन ढके शव और रोते-बिलखते बच्चों-बूढों को देखना ही जैसे इनकी नियती है। माता-पिता से दूर इन बç“ायों को दिलासा दे भी तो कौन!हर ऎसी घडी में वे छात्रावास अधीक्षिका के कमरे की ओर दौड पडती हैं। उस रात सोती भी उन्हीं के कमरे में है। छात्राओं के मन में दहशत इस कदर समाई है कि जब दसवीं और बारहवीं की लडकियां छुट्टियों में घर चली जाती हैं तो छोटी लडकियां भी घर जाने की जिद पकड लेती हैं। । छात्रावास में टेलीफोन नहीं होने से घर से भी सम्पर्क नहीं रहता।
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