राजसमंद। महाशिवरात्रि पर देवगढ के समीप के प्रसिद्ध धार्मिक एवं पर्यटन स्थल आंजनेश्वर महादेव पर दो दिवसीय मेला 23-24 फरवरी को लगेगा। मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा है वहीं ग्राम पंचायत की ओर से मेले की व्यवस्था व मंदिर को सजाने-संवारने का कार्य जोरों पर है।स्वयंभू लिंगमुख्य मंदिर दो विशालकाय चट्टानों के बीच बना है। मंदिर में एक छोटा स्थापना स्वयंभू लिंग स्थापित है तथा बडा शिवलिंग करीब तीन फीट ऊंचा है। यहां दोपहर 12 बजे एवं शाम सात बजे मुख्य आरती होती है। मंदिर के पीछे चट्टानों के बीच स्थापित होने से मंदिर में हल्का अंधियारा व ठण्डक रहती है। मंदिर के उपरी छोर की पूर्वी दिशा में ब्रrाशिला कुण्ड के ऊपर संगमरमर का वजनी त्रिशूल स्थापित है। यहां लगे शिलालेख के अनुसार त्रिशूल की स्थापना संवत् 1847 से पूर्व हुई थी। समीप स्थित ब्रrाशिला कुण्ड के बारे में कहावत है कि कितना ही बडा अकाल हो, कुण्ड का पानी कभी नहीं सूखता। मंदिर के मुख्य दरवाजे के सामने वाला कुण्ड इन दिनों खाली पडा है। चारों और सीढियों से निर्मित विशाल कुण्ड आकर्षण का केन्द्र है।ब्रrाशिला कुण्ड के समीप दो बडी-बडी चट्टानों के बीच काफी लम्बी गुफा है। कहते हैं कि सदियों पूर्व कई ऋषि-मुनियों ने यहां तपस्या की। आंजनेश्वर महादेव देवगढ में पांच किलोमीटर दूर व सडक मार्ग से जुडा होने के कारण आवागमन के साधनों से लगा हुआ है। अनेक समाज की सरायें भी यहां बनी हुई है। धार्मिक एवं पर्यटन स्थल होने से यहां आए दिन गोठ वगैरह के आयोजन होते रहते हैं।शिव के स्वरूपनाथद्वारा।पारम्परिक कला में नाथद्वारा चित्र शैली की विशिष्ठ पहचान है। इस शैली से जुडे कलाकारों ने शिव स्वरूपों का विविधता से रंग संयोजन किया है। मोबेगढ , गोवर्द्धन कुण्ड तथा नई हवेली चौक के प्राचीन भवनों में भी शिव विष्ायक भित्ति चित्रांकन देखा जा सकता है। नगर के कई कलाकार आज भी शिव, शिव- पार्वती एवं शिव परिवार का उपाड तकनीक में संयोजन कर रहे हैं। नीलवर्णी शिव नगर के शिवालयों, घरों व दुकानों पर आज भी नाथद्वारा शैली की नीलवर्णी शिव की छवियां प्रदर्शित हैं। नागधारी-जटाधारी शिव की मुखाकृति का एक स्वरूप तो इतना प्रसिद्ध रहा कि आज भी कलाकार उनकी प्रतिकृतियां बना कर शिवप्रेमियों की मांग को पूर्ण कर रहे हैं। शिव स्वरूप कैलेण्डर आर्ट में शिव के भाव रूपों को रूपांकित करने वाले कलाकारों में टी.के.शर्मा, बी.जी.शर्मा व इन्द्र शर्मा प्रमुख हैं । इन्द्र शर्मा ने शिव के भाव रूपों पर आधारित चित्र श्ृंखला बनाई, जिसमें शिव विविध भाव मुद्राओं में है।
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