Friday, March 20, 2009

विवेकवान ही महान : मुनि तत्वरूचि

राजसमन्द। पद और पैसा पा लेने से अथवा पढ लिखकर बडी डिग्रीयां हासिल कर लेने से कोई बडा नहीं होता। बडा वह जिसे विवेक प्राप्त है। वास्वत में विवेकवान ही महान है। उक्त विचार मुनि तत्वरूचि तरूण ने शुक्रवार को तेरापंथ भवन कांकरोली में विवेक ही धर्म है विषय पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किए। उन्होने कहा धर्म विवेक है। धार्मिक क्रियाएं कोई कितनी ही करे यदि विवेक चेतना का जागरा नही हुआ तो धार्मिकता पर प्रश् चिन्ह लग जाता है। विवेक पूर्वक किया हुआ धर्माचरण ही व्यावहारिक और आध्यात्मिक दोनो दृष्टिया से श्रेयस्कर है। मुनि ने कहा शिक्षित महिला और पुरूष का मिलना इतना कठिन नहीं है जितना कि विवेकवान व्यक्ति का मिलना। दुनियां में विद्वान होना कोई खास बात नहीं, विवेकवान होना बडी बात है। संसार की सबसे बडी निधि और उपलब्धि है- विवेक। बडे आदमी कोई बडा काम नहीं करते बल्कि छोटे-छोटे कामाें को करीने से करने की कला ही उनकी महानता का द्योतक है। इस अवसर पर मुनि ने प्रेक्षाध्यान के प्रयोग करवाये। इस अवसर पर मुनि भवभूति, मुनि कोमल, मुनि विकास ने भी विचार व्यक्त किए।

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