Monday, February 16, 2009

मुश्किल है चुप रहनाÓ पर संगोष्ठी सम्पन्न

राजसमन्द। राजस्थान साहित्य अकादमी एवं राजस्थान साहित्यकार परिषद कांकरोली के तत्वावधान में डॉ. दीपक आचार्य की कविता पुस्तक 'मुश्किल है चुप रहनाÓ पर संगोष्ठी मधुसूदन पाण्डया और एम.डी. कनेरिया के सान्निध्य में आयोजित हुई।
अणुव्रत विश्व भारती राजसमन्द के पुस्तकालय में आयोजित इस संगोष्ठी के संयोजक कमर मेवाड़ी ने कहा कि आज जब इलेक्ट्रोनिक मीडिया लोगों को गुमराह करने पर तुला है तब प्रिंट मिडिया की जिम्मेदारी ओर अधिक बढ़ जाती है। हमारे समाचार पत्र और पत्रिकाएं अपनी इस जिम्मेदारी का निर्वाह बड़ी इमानदारी के साथ कर रहे है। पुस्तकें मनुष्य की सच्ची दोस्त है क्योंकि वे उसे ज्ञानवान एवं एक जागरूक नागरिक बनाने के साथ-साथ कर्तव्य का बोध भी कराती है। दीपक आचार्य की मुश्किल है चुप रहना की कविताएं अपने पाठकों को सचेत करने के साथ-साथ चुप्पी तोडऩे का आह्वान भी करती है।
संगोष्ठी में कथाकार माधव नागदा तथा युवा गीतकार त्रिलोकी मोहन पुरोहित ने मुश्किल है चुप रहना पर पत्र वाचन किया। माधव नागदा नेकहा कि आचार्य ने अपनी कविताओं में प्रकृति का मानवीकरण किया है। पहाड, नदी, चिडिया जैसे प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात कही है। प्रतीकों और बिम्बों की ताजगी पाठक के मन में उत्साह उत्पन्न करती है। त्रिलोकी मोहन पुरोहित ने कहा कि आचार्य ने कविताएं लिखने के लिए नहीं बल्की सत्य को उदïघाटित करने के लिए लिखी है। कवि अफजल खां अफजल ने कहा कि आचार्य ने नदियां श्रृंखला कविता में जीवन के विविध आयामों का जिस कौशल और ललात्मकता के साथ उद्घाटन किया है वह काबिले तारीफ है। नगेन्द्र मेहता के अनुसार आचार्य की कविता की अंतर्निहित व्यंग्यात्मक बहुत गहरे तक प्रभावित करती है। एमडी कनेरिया ने कहा कि यह कविताएं अंधकार पर विजय प्राप्त करने की कविताएं है और मनुष्य के अस्तित्व में आस्ािा जगाती है। राजस्थान साहित्यकार परिषद के संरक्षक मधुसूदन पाण्डया ने कहा कि जिन चीजों की हम उपेक्षा कर देते है उन्हीं को आचार्य ने अपनी कविता में प्रतीकों के माध्यम से जीवंत कर देते है। संगोष्ठी में किशन कबीरा, जवान सिंह सिसोदिया, शेख अब्दुल हमीद, मनोहर सिंह आशिया, राधेश्याम सरावगी, भंवर लाल पालीवाल बॉस, मोहम्मद इलियास और गोपालकृष्ण खण्डेलवाल ने कृति पर अपने विचार व्यक्त किए।

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