राजसमन्द। राजस्थान साहित्यकार परिषद की ओर से रविवार को रामेश्वर महादेव सभागार में अफजल हुसैन की मेजबानी में साहित्यकारों की मासिक संगोष्ठी का आयोजन संस्थान अध्यक्ष हमीद शेख की अध्यक्षता में हुआ।
संगोष्ठी का शुभारंभ इलियास मोहम्मद ने 'जिहाद से सदा दुनियां को मिटाने वालों क्या तुमने जन्नज दोजख खुदा को देखा' शायरी के माध्यम से दाद बटोरी। नगेन्द्र मेहता ने 'जूं नहीं रेंगती सत्ताासीन होशियारो के क्योंकि सिंहासन बचाना उनकी है मजबूरी' के माध्यम से वर्तमान पध्दति पर व्यंग्य बाण छोडे। मनोहर सिंह आशिया ने 'अब का सावन कैसे बीता-साजन बीन सब बेकार' और रक्षाबंधन पर रचना पेष की जिसमें बहन द्वारा भाई को एक पेड लगाने की सौगात वृक्ष की रक्षा की भावना को व्यक्त किया। किशन कबीरा ने 'नदी के मैं और तुम-नदी की इस ओर मैं और उस ओर तुम' के माध्यम से आंखों ही आंखों में पूछ लेते है आपस में हाल प्रस्तुत की। त्रिलोकी मोहन पुरोहित ने ज्योतिमय ज्ञान के माध्यम से 'सब कुछ अच्छा ही अच्छा पर आदमी सच देखता ही नहीं' के माध्यम से मानवीय दर्द की प्रस्तुति दी। अफजल जी अफजल ने 'फहराते आये है प्रति वर्ष फहराके तिरंगा 15 अगस्त' और 'तपता खेता में बादलियों बरसा दे' गीत सुनाए। ईश्वरलाल शर्मा ने 'करके श्रृंगार जो चढी घटा तथा भीड में बना अकेला' रचना प्रस्तुत की। भंवरलाल बोस ने 'अब तो बरसों रे बादल' के माध्यम से पहली बरसात में खेतों में फसलों की तैयारी की ओर नव फसले बडी होने लगी तो बिन बरसात के किसानों की मेहनत पर पानी फिरता नजर आया। एमडी कनेरिया स्नेहिल ने 'पसीना बहाएंगे तो रोटिया खाओगे' तथा वृक्षों का जीवन ही हमारा जीवन है सुनाकर वाहवाही लूटी। कमर मेवाडी ने राजस्थानी कहानी 'चैनराम रो सवाल' के माध्यम से गांव से शहर पढने गए बालक का पुन: गांव में न लौटना पिता के लिए कितना कष्टकारक होता है। बालक को मार दिया अथवा वह शहर की भीड में खोकर रह गया पता नहीं। माधव नागदा ने कॉर्पोरेट के साक्षात्कार में दो मित्रों के साक्षात्कार का ब्यौरा जिसमें एक के लिए मां का दर्जा सर्वोपरी और दूसरे के लिए उन्हीं के सुर मेें जवाब देना पडता है नौकरी पा लेना। राधेष्याम सरावगी ने 'कोठियों से मुल्क को न आंकिये' 'हर झोंपडी भूख की चौपाल है' रचना सुनाई। हमीद शेख ने गजल 'ऐसे में जब कि जा चुकी हर चीज हाथ से' 'अपना जमीन अपनी ये गैरत संभाल लूं' सुनाकर वाहवाही बटोरी। संयोजन राधेष्याम सरावगी ने किया।
संगोष्ठी का शुभारंभ इलियास मोहम्मद ने 'जिहाद से सदा दुनियां को मिटाने वालों क्या तुमने जन्नज दोजख खुदा को देखा' शायरी के माध्यम से दाद बटोरी। नगेन्द्र मेहता ने 'जूं नहीं रेंगती सत्ताासीन होशियारो के क्योंकि सिंहासन बचाना उनकी है मजबूरी' के माध्यम से वर्तमान पध्दति पर व्यंग्य बाण छोडे। मनोहर सिंह आशिया ने 'अब का सावन कैसे बीता-साजन बीन सब बेकार' और रक्षाबंधन पर रचना पेष की जिसमें बहन द्वारा भाई को एक पेड लगाने की सौगात वृक्ष की रक्षा की भावना को व्यक्त किया। किशन कबीरा ने 'नदी के मैं और तुम-नदी की इस ओर मैं और उस ओर तुम' के माध्यम से आंखों ही आंखों में पूछ लेते है आपस में हाल प्रस्तुत की। त्रिलोकी मोहन पुरोहित ने ज्योतिमय ज्ञान के माध्यम से 'सब कुछ अच्छा ही अच्छा पर आदमी सच देखता ही नहीं' के माध्यम से मानवीय दर्द की प्रस्तुति दी। अफजल जी अफजल ने 'फहराते आये है प्रति वर्ष फहराके तिरंगा 15 अगस्त' और 'तपता खेता में बादलियों बरसा दे' गीत सुनाए। ईश्वरलाल शर्मा ने 'करके श्रृंगार जो चढी घटा तथा भीड में बना अकेला' रचना प्रस्तुत की। भंवरलाल बोस ने 'अब तो बरसों रे बादल' के माध्यम से पहली बरसात में खेतों में फसलों की तैयारी की ओर नव फसले बडी होने लगी तो बिन बरसात के किसानों की मेहनत पर पानी फिरता नजर आया। एमडी कनेरिया स्नेहिल ने 'पसीना बहाएंगे तो रोटिया खाओगे' तथा वृक्षों का जीवन ही हमारा जीवन है सुनाकर वाहवाही लूटी। कमर मेवाडी ने राजस्थानी कहानी 'चैनराम रो सवाल' के माध्यम से गांव से शहर पढने गए बालक का पुन: गांव में न लौटना पिता के लिए कितना कष्टकारक होता है। बालक को मार दिया अथवा वह शहर की भीड में खोकर रह गया पता नहीं। माधव नागदा ने कॉर्पोरेट के साक्षात्कार में दो मित्रों के साक्षात्कार का ब्यौरा जिसमें एक के लिए मां का दर्जा सर्वोपरी और दूसरे के लिए उन्हीं के सुर मेें जवाब देना पडता है नौकरी पा लेना। राधेष्याम सरावगी ने 'कोठियों से मुल्क को न आंकिये' 'हर झोंपडी भूख की चौपाल है' रचना सुनाई। हमीद शेख ने गजल 'ऐसे में जब कि जा चुकी हर चीज हाथ से' 'अपना जमीन अपनी ये गैरत संभाल लूं' सुनाकर वाहवाही बटोरी। संयोजन राधेष्याम सरावगी ने किया।
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