Wednesday, March 31, 2010

आमेट आज भी पहचान को तरस रहा

आमेट। मार्बल तथा कपडा उद्योग के लिए राज्य के साथ देश में विशिष्ट पहचान रखने वाला कस्बा आमेट आज भी पहचान को तरस रहा है। हाल यह है कि 35 हजार की आबादी वाले इस कस्बे के लिए कोई व्यक्ति यदि रेलवे के किसी आरक्षण केन्द्र से टिकट प्राप्त करना चाहे तो उसे लौटा दिया जाता है। इसके अलावा पते के बाद आमेट लिखी डाक को आए दिए डाकिये लौटा देते हैं कि इस नाम की कोई जगह नहीं है।
नागरिकों ने बताया कि वर्तमान में आमेट में उपखण्ड कार्यालय, नगर पालिका, दूरदर्शन केन्द्र, बीएसएनएल केन्द्र, पंचायत समिति, तहसील कार्यालय, उपकोष कार्यालय, बैंकिंग, बीमा तथा स्वास्थ्य के साथ अन्य सभी मूलभूत सुविधाओं के केन्द्र हैं। इन सभी पर आमेट उल्लेखित है लेकिन रेलवे स्टेशन तथा डाकघर ही मात्र ऎसे स्थान हैं जहां इसका उल्लेख नहीं है। रेडिमेड तथा मार्बल के क्षेत्र में देश में विशिष्ट स्थान बना चुके कस्बे के नागरिकों के लिए यह दोहरी नीति परेशानी का सबब बन गई है।
पन्नाधाय भी यहीं की थी
बुजुर्गो ने बताया कि रियासतकाल में आमेट ठिकाने की गिनती सोलह उमरावों में की जाती थी। वीरता और त्याग के लिए विश्व भर में जानी जाने वाली पन्नाधाय भी आमेट ठिकाने के कमेरी गांव की ही थी। इसके साथ ही ठिकाने के ही वीरपन्ना तथा जग्गा का नाम भी इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
वीरता और संपन्नता के साथ आमेट आज गो रक्षण तथा संवर्द्धन के एक बडे केन्द्र के रूप में उभर रहा है। भीलवाडा रोड पर गोवंश के रक्षा के लिए 60 बीघा क्षेत्र में भामाशाहों तथा प्रबुद्धजनों के सहयोग से गोशाला स्थापित की गई है जहां वर्तमान में पांच सौ से अधिक गोवंश है। नागरिकों ने प्रशासन के साथ केन्द्र सरकार से रेलवे स्टेशन तथा डाकघर का नाम भी आमेट करने की मांग की है।

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