केन्द्र सरकार की योजना के तहत भारतीय जीवन बीमा निगम से संबद्ध एक स्वयंसेवी संस्थान गरीबों की गाढे पसीने की पाई-पाई ठग कर फरार है। केवल आईडाणा में ही बीपीएल/एपीएल वर्ग के करीब 1130 लोग इस ठगी का शिकार हुए हैं। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि पंचायत समितियों, तहसील व जिला स्तर पर कितने जनों ने राशि जमा कराई होगी। इस संस्थान के सभी पदाघिकारियों के दूरभाष नंबर काम नहीं कर रहे हैं और कार्यालयों पर भी ताले लगे हैं।
केन्द्र सरकार ने देशभर के बीपीएल व एपीएल परिवारों के लिए जीवन मधुर पॉलिसी जारी की थी। इसकी नोडल एजेंसी भारतीय जीवन बीमा निगम को बनाया गया था। निगम ने आगरा (उत्तर प्रदेश) की स्वयंसेवी संस्था 'संस्कार सेवा संस्थान' को इसका जिम्मा सौंपा था। संस्थान ने लेटरपेड पर निगम के लोगो का उपयोग कर देशभर के कई गांवों में कार्यालय खोले और निगम का सौजन्य बताकर गरीबों से जीवन मधुर पॉलिसी के तहत बीमे किए। संस्थान ने प्रति राशनकार्ड प्रति व्यक्ति 250 रूपए प्रीमियम लिया। इसमें सौ रूपए जीवन पॉलिसी व 150 रूपए स्वास्थ्य कार्ड बाबत थे। इसमें कहा गया कि पॉलिसी की परिपक्वता तिथि पर 10 वर्ष बाद 12 हजार रूपए, दुर्घटना में मृत्यु पर 75 हजार रूपए व साधारण मृत्यु पर 30 हजार रूपए देना तय था।
गांवों में अधिकारी नियुक्तसंस्थान ने ग्राम पंचायत स्तर पर एक सुपरवाइजर नियुक्त किया। संस्थान ने इसे भारतीय जीवन बीमा निगम की एजेंसी बताया। निगम की साख को देखते हुए कई बेरोजगार संस्थान में नौकरी करने लगे। निगम के नाम के कारण कई लोगों ने इस पॉलिसी को लिया। आवेदन-पत्र पर एलआईसी का लोगो तथा मण्डल कार्यालय जयपुर व अजमेर अंकित थे। कथित ठगी के बाद अब कार्यालय बंद हैं। संस्थान के अध्यक्ष, सचिव व राष्ट्रीय निदेशक का भी कोई पता नहीं है।
निगम जिम्मेदार!निगम ने 12 नवम्बर, 2009 को एक अधिसूचना जारी की थी। इसमें कहा गया कि जयपुर-1 डिवीजन से प्राप्त फॉर्मेट व जयपुर-1 डिवीजन के मार्केटिंग मैनेजर की अनुशंसा पर संस्कार सेवा संस्थान को इस कार्य के लिए नियुक्त किया जाता है।
मुझे शिकायत मिली थी कि आगरा का कोई स्वयंसेवी संस्थान है, जो राजस्थान में इस तरह का काम कर रहा है लेकिन इसे कौन चला रहा है, यह जानकारी नहीं है। इसकी शिकायतें मिलने के बाद निगम ने इसका कार्य बंद करा दिया है। अन्य जानकारी के लिए दिल्ली संपर्क करना चाहिए। सीपीएस चुण्डावत, प्रबंधक, सूक्ष्म बीमा विभाग [एलआईसी]
केन्द्र सरकार ने देशभर के बीपीएल व एपीएल परिवारों के लिए जीवन मधुर पॉलिसी जारी की थी। इसकी नोडल एजेंसी भारतीय जीवन बीमा निगम को बनाया गया था। निगम ने आगरा (उत्तर प्रदेश) की स्वयंसेवी संस्था 'संस्कार सेवा संस्थान' को इसका जिम्मा सौंपा था। संस्थान ने लेटरपेड पर निगम के लोगो का उपयोग कर देशभर के कई गांवों में कार्यालय खोले और निगम का सौजन्य बताकर गरीबों से जीवन मधुर पॉलिसी के तहत बीमे किए। संस्थान ने प्रति राशनकार्ड प्रति व्यक्ति 250 रूपए प्रीमियम लिया। इसमें सौ रूपए जीवन पॉलिसी व 150 रूपए स्वास्थ्य कार्ड बाबत थे। इसमें कहा गया कि पॉलिसी की परिपक्वता तिथि पर 10 वर्ष बाद 12 हजार रूपए, दुर्घटना में मृत्यु पर 75 हजार रूपए व साधारण मृत्यु पर 30 हजार रूपए देना तय था।
गांवों में अधिकारी नियुक्तसंस्थान ने ग्राम पंचायत स्तर पर एक सुपरवाइजर नियुक्त किया। संस्थान ने इसे भारतीय जीवन बीमा निगम की एजेंसी बताया। निगम की साख को देखते हुए कई बेरोजगार संस्थान में नौकरी करने लगे। निगम के नाम के कारण कई लोगों ने इस पॉलिसी को लिया। आवेदन-पत्र पर एलआईसी का लोगो तथा मण्डल कार्यालय जयपुर व अजमेर अंकित थे। कथित ठगी के बाद अब कार्यालय बंद हैं। संस्थान के अध्यक्ष, सचिव व राष्ट्रीय निदेशक का भी कोई पता नहीं है।
निगम जिम्मेदार!निगम ने 12 नवम्बर, 2009 को एक अधिसूचना जारी की थी। इसमें कहा गया कि जयपुर-1 डिवीजन से प्राप्त फॉर्मेट व जयपुर-1 डिवीजन के मार्केटिंग मैनेजर की अनुशंसा पर संस्कार सेवा संस्थान को इस कार्य के लिए नियुक्त किया जाता है।
मुझे शिकायत मिली थी कि आगरा का कोई स्वयंसेवी संस्थान है, जो राजस्थान में इस तरह का काम कर रहा है लेकिन इसे कौन चला रहा है, यह जानकारी नहीं है। इसकी शिकायतें मिलने के बाद निगम ने इसका कार्य बंद करा दिया है। अन्य जानकारी के लिए दिल्ली संपर्क करना चाहिए। सीपीएस चुण्डावत, प्रबंधक, सूक्ष्म बीमा विभाग [एलआईसी]
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