Monday, March 29, 2010

अनियमितता, जांच, पुष्टि... !

राजसमंद। तीन वर्ष पूर्व लाखों रूपए के निर्माण कार्यो में जमकर धांधली करने और चहेतों को लाभ पहुंचाने के मामलों की जांच हो गई। जांच में अनियमितताओं की पुष्टि भी हो गई लेकिन दोषियों को दण्ड, सजा के नाम पर जाकर मामला अटक गया। यही नहीं , इस बात को चार वर्ष होने आए। गौरतलब है कि मार्च 2007 से मई 2008 की अवधि में कराए गए इन कार्यो में जमकर धांधली हुई थी। इस बारे में मिली शिकायतों पर जिला कलक्टर की ओर से गठित जांच समिति ने भी धांधली की पुष्टि की थी।
यूं हुई धांधली
पालिका ने गौरव पथ पर जिला परिषद से राष्ट्रीय राजमार्ग तक नाला बनाने का प्रस्ताव पारित कर 15.24 लाख रूपए स्वीकृत किए। तय स्थान पर नाला बनाने का काम अधूरा छोडकर श्रीजी विहार में सीसी सडक बनवा दी गई। नाले को अधूरा छोडने से 4.12 लाख रूपए का निर्माण बेकार हो गया था। श्रीजी विहार में सडक पर 13.46 लाख रूपए खर्च किए गए जबकि यह सडक बनाने की कहीं भी स्वीकृति नहीं थी। ठेकेदार को 16.04 लाख रूपए के कार्यादेश के स्थान पर 17.59 रूपए का भुगतान कर दिया गया था।
दस काम तो किए नहीं
धोईदा सामुदायिक भवन के सामने फ्लोरिंग कार्य में निर्माण सामग्री तय से अधिक मात्रा में काम ली गई। इसके लिए किसी भी समक्ष अधिकारी या बोर्ड से स्वीकृति नहीं ली गई थी। इसी तरह भैरूजी का देवरा से नाथद्वारा रोड स्कूल तक सडक बननी थी। इसके स्थान पर नाथद्वारा रोड जावद से स्कूल तक ही सडक बनाई गई।
सडक पर डामरीकरण होना था, लेकिन ग्रेवल स्तर तक ही काम किया गया। जी-शिड्यूल में तय 10 काम तो मौके पर हुए ही नहीं थे। धोर्ईदा स्थित पानी की टंकी से उ"ा माध्यमिक विद्यालय तक तीस अप्रेल तक नाला बनना था, जिसका चौथा बिल ठेकेदार ने काम खत्म होने के छह माह बाद पेश किया। इस पर नियमानुसार जुर्माना नहीं लिया गया।
स्लेब में भी धांधली
शहर के नालों पर 15.21 लाख की लागत से सीमेंट कंक्रीट से बने स्लेब लगने थे, जिसमें स्लेब आपूर्ति और फिक्सिंग कार्य पर केवल 29 हजार 600 रूपए ही खर्च किए गए। सडकें साल भर के भीतर ही टूट गई थी। ढक्कन लगाने के काम के स्थान पर दूसरों कामों में 8.51 लाख रूपए खर्च किए गए। बिलों में एक ही काम का दो बार भुगतान उठाया गया था।
हां, यह सही है कि जांच में अनियमितता की पुष्टि हुई थी। हमने राज्य सरकार को जांच रिपोर्ट भेज दी गई थी। बाद में क्या हुआ, पता नहीं है।
दिनेश कोठारी, उप निदेशक, स्वायत्त शासन विभाग, उदयपुर
मामला उपनिदेशक के पास विचाराधीन है। वे ही कुछ कह सकते हैं। मामला चार साल पुराना है और जांच कब तक चलेगी यह कहना असंभव है।
नारायणसिंह सांदू

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