Tuesday, October 20, 2009

न छाया न पानी, सैलानियों को हैरानी

खमनोर। आम पर्यटक स्थलों को उपेक्षित देखना तो अब आम बात हो गई है, लेकिन जिन पर्यटन स्थलों के साथ राष्ट्र का गौरव और अमूल्य निशानियां हुडी हुई हैं, उनकी दुर्दशा देख कर हर कोई द्रवित हो उठता है। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की पावन स्मृति में लगभग दो करोड 35 लाख रूपए की लागत से हल्दी घाटी क्षेत्र में निर्मित महाराणा प्रताप राष्ट्रीय स्मारक आज भी विकास से कोसों दूर है। यहां आने वाले पर्यटकों को गाइडों की कमी तो खलती ही है, यहां पेयजल की भी भारी समस्या है।
आगंतुक को स्मारक परिसर तक पहुंचने के लिए ऊंचे-नीचे पथरीले रास्तों का सहारा लेना पडता है। बैठने की व्यवस्था भी अच्छी नहीं है तो सैलानियों-मेहमानों को छाया भी नसीब नहीं होती है। हालत यह है कि महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर धूल की परत जमने के साथ ही परिसर में कंटीली झाडियों का ढेर लग गया है।
युद्ध तिथि पर शिलान्यासतत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. इंद्रकुमार गुजराल, पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी व तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत की उपस्थिति में हल्दीघाटी युद्ध तिथि पर वर्ष 1997 में स्मारक का शिलान्यास किया गया। वहीं 21 जून 2009 को केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ. सीपी जोशी व पर्यटन मंत्री बीना काक की उपस्थिति में स्मारक का लोकार्पण किया गया था।
कौन बताए इतिहासस्मारक परिसर में आने वाले विदेशी पर्यटकों को हल्दीघाटी के इतिहास के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के लिए यहां कोई गाइड नहीं है। ऎसे में यहां आने वाले पर्यटक खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं। पानी की समुचित व्यवस्था नहीं होने से भी यहां आने वाले लोगों को मुश्किलों का सामना करना पडता है। परिसर में निर्मित फव्वारे भी बंद पडे हुए हैं। यही नहीं, खुला रंगमंच भी बेकार साबित हो रहा है।
छाया नहीं, पांव में छालेविकास के नाम पर दो करोड 35 लाख रूपए व्यय होने के बावजूद आज भी स्मारक परिसर तक पहुंचने के लिए सैलानियों को पथरीले व कच्चे रास्तों का ही सहारा लेना पडता है। पांव में छाले पडने की वजह से यहां विदेशी पर्यटक तो आने से कतराने ही लगे हैं। महाराणा प्रताप स्मारक परिसर में छाया भी नसीब नहीं है। यदि किसी तरह थकने के बाद परिसर में पहुंच भी जाएं तो बैठने का स्थान भी नसीब नहीं होगा।

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