राजसमंद। शायद पूरे राजसमंद जिले में अचानक महामारी के हालात पैदा हो गए हैं। कुछ दिनों पूर्व तक ऎसा नहीं था, लेकिन जैसे ही चिकित्सा व स्वास्थ्य विभाग की ओर से जगह-जगह चिकित्सा शिविर लगना शुरू हुए, ऎसा ही नजर आ रहा है।
सरकारी आंकडों पर नजर दौडाएं तो जहां भी चिकित्सा शिविर लगता है वहां रोजाना तकरीबन चार सौ से पांच सौ रोगी पैदा होते हैं। सभी तहसीलों का समेकित आंकडा करीब एक हजार से अघिक का बैठता है। दिलचस्प पहलू यह कि सभी रोगियों को मौके पर ही पूरा उपचार कर ठीक भी किया जा रहा है।
यही नहीं, एक ही स्थान पर रोगियों को घर ले जाने के लिए दवाइयां देने के अलावा मिनी किट वितरण का कार्य भी युद्धस्तर पर किया जा रहा है। इन कागजी आंकडों ने जिले की जनता के स्वास्थ्य पर सवालिया निशान लगा दिया है। आबादी से अघिक रोगी कुछ स्थानों पर तो ऎसे भी वाकये नजर आए, जब आबादी से अघिक रोगियों का उपचार करने की घोषणा कर दी गई। बाद में मानवीय भूल बता कर आंकडों में फेरबदल भी किया गया।
22 दिन, 36000 मरीजजिले की 206 ग्राम पंचायतों में राज्य सरकार के निर्देशों के बाद 15 सितम्बर से चिकित्सा शिविर लगाए जा रहे हैं। इसके तहत 7 अक्टूबर तक जिले में कुल 158 शिविर लग चुके हैं। शिविरों में 49 चिकित्सकों व 25 आयुष चिकित्सकों की टीम ने मिल कर कुल 35 हजार 899 रोगियों का पंजीकरण किया। इनमें से 20 हजार 176 पुरूष व 17 हजार 376 महिलाएं शामिल हैं। जांच व प्राथमिक उपचार के अलावा कुल 23 हजार 157 रोगियों का उपचार किया गया। इस आधार पर प्रतिदिन करीब डेढ हजार से अघिक रोगियों का उपचार किया जा रहा है।
मिलती है मोटी राशिप्रत्येक ग्राम पंचायत को शिविर आयोजन पेटे राज्य सरकार की ओर से अग्रिम तौर पर मोटी राशि मिलती है। प्रचार वाहन पेटे एक हजार रूपए व गतिविघियों के संचालन के लिए पांच हजार रूपए के अलावा इतनी ही राशि (पांच हजार रूपए) का ब्लॉक स्तर पर समापन समारोह के लिए प्रावधान किया गया है।
चिकित्सा व स्वास्थ्य विभाग का मानना है कि जिले के सभी प्राथमिक, सामुदायिक व उप स्वास्थ्य केन्द्रों में सालाना तकरीबन सात लाख आउटडोर रोगी आते हैं, इस आधार पर चिकित्सा शिविरों में लगने वाली रोगियों की भीड नई बात नहीं है।
सरकारी आंकडों पर नजर दौडाएं तो जहां भी चिकित्सा शिविर लगता है वहां रोजाना तकरीबन चार सौ से पांच सौ रोगी पैदा होते हैं। सभी तहसीलों का समेकित आंकडा करीब एक हजार से अघिक का बैठता है। दिलचस्प पहलू यह कि सभी रोगियों को मौके पर ही पूरा उपचार कर ठीक भी किया जा रहा है।
यही नहीं, एक ही स्थान पर रोगियों को घर ले जाने के लिए दवाइयां देने के अलावा मिनी किट वितरण का कार्य भी युद्धस्तर पर किया जा रहा है। इन कागजी आंकडों ने जिले की जनता के स्वास्थ्य पर सवालिया निशान लगा दिया है। आबादी से अघिक रोगी कुछ स्थानों पर तो ऎसे भी वाकये नजर आए, जब आबादी से अघिक रोगियों का उपचार करने की घोषणा कर दी गई। बाद में मानवीय भूल बता कर आंकडों में फेरबदल भी किया गया।
22 दिन, 36000 मरीजजिले की 206 ग्राम पंचायतों में राज्य सरकार के निर्देशों के बाद 15 सितम्बर से चिकित्सा शिविर लगाए जा रहे हैं। इसके तहत 7 अक्टूबर तक जिले में कुल 158 शिविर लग चुके हैं। शिविरों में 49 चिकित्सकों व 25 आयुष चिकित्सकों की टीम ने मिल कर कुल 35 हजार 899 रोगियों का पंजीकरण किया। इनमें से 20 हजार 176 पुरूष व 17 हजार 376 महिलाएं शामिल हैं। जांच व प्राथमिक उपचार के अलावा कुल 23 हजार 157 रोगियों का उपचार किया गया। इस आधार पर प्रतिदिन करीब डेढ हजार से अघिक रोगियों का उपचार किया जा रहा है।
मिलती है मोटी राशिप्रत्येक ग्राम पंचायत को शिविर आयोजन पेटे राज्य सरकार की ओर से अग्रिम तौर पर मोटी राशि मिलती है। प्रचार वाहन पेटे एक हजार रूपए व गतिविघियों के संचालन के लिए पांच हजार रूपए के अलावा इतनी ही राशि (पांच हजार रूपए) का ब्लॉक स्तर पर समापन समारोह के लिए प्रावधान किया गया है।
चिकित्सा व स्वास्थ्य विभाग का मानना है कि जिले के सभी प्राथमिक, सामुदायिक व उप स्वास्थ्य केन्द्रों में सालाना तकरीबन सात लाख आउटडोर रोगी आते हैं, इस आधार पर चिकित्सा शिविरों में लगने वाली रोगियों की भीड नई बात नहीं है।
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