राजसमन्द। शरद पूर्णिमा पर तुलसी शिखर पर डॉ. बालकृष्ण गर्ग की अध्यक्षता एवं फतेहलाल के मुख्य आतिथ्य में एक काव्य गोष्टि का आयोजन किया । काव्य गोष्ठि का डॉ बालकृष्ण गर्ग ने माँ शारदा की वंदना क रते हुए जय जय.... माँ शारदा का आगाज किया। फतेहलाल ने बृज भाषा एवं राजस्थानी भाषा में कान्हा के प्रेम रस में पगी गीत एवं गजल प्रस्तुत करते हुए शरद पूर्णिमा के महामात्य को अभिव्यक्ति दी।चतुर कोठारी ने कुर्सी को प्रतिक बनाते हुऐ राजनेताओं पर करारा व्यगं किया। इसी क्रम मे लालु प्रसाद यादव को प्रतिक बना नरेन्द्र कुशवाहा ने देश की दिशा एवं दशा पर चोट की। जीतमल कच्छारा ने महात्मा गांधी को याद करते हुऐ देश की वर्तमान स्थिति पर अपनी पीडा को अभिव्यक्त किया। कवि अर्जुन कावडिया ने दर्शन एवं आध्यात्म पर अपना कविता पाठ किया तो दुर्गाप्रसाद मधु ने बृज भाषा एवं राजस्थानी भाषा में श्रृंगार रस में रचनाऐंं प्रस्तुत करते हुए गोष्ठि के वातावरण को रसमय बना दिया।संस्था के कार्याध्यक्ष भवर वागरेचा ने झरोखा में बैठा उदास कबूतर तथा तुम पूछ रहे क्या मजहब मेरा के माध्यम से आज के युग में जी रहे मानव की व्यथा एवं विडम्बना को प्रस्तुत किया। डा सुखलाल एवं डा. सुरेन्द्र ने बिच-बिच में अपनी पेरोडियॉ एवं काव्य पाठ से गोष्ठि में दाद लुटी।
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