गिलूण्ड। लगातार अल्पवृष्टि एवं अनावृष्टि के चलते इस साल क्षेत्र में सूखे चारे की समस्या किसानों व पशुपालकों के सामने अभी से मुंह-बाये खडी नजर आने लगी है।करीब डेढ दशक पूर्व तक यह क्षेत्र फसल उत्पादन के मामले में जिले का गंगानगर जाना जाता था, लेकिन निरंतर अकाल की मार ने किसानों की कमर तोड दी एवं उन्हें पलायन को मजबूर कर दिया।
अब पशुओं के लिए चारे की समस्या किसानों को सता रही है। किसान इन दिनों ज्वार, मक्का आदि की कडब को सुरक्षित करने में जुटे हैं। टै्रक्टरों एवं बैलगाडियों में भरकर सूखे चारे का पारम्परिक तरीके से भण्डारण किया जा रहा है। पिछले वर्षो में घास व सूखा चारा बेचने का कार्य करने वाले बडे काश्तकार भी इस बार घास खरीद रहे हैं।
महंगा हुआ चारा
चार से पांच रूपए प्रति ज्वार की पुली के दाम में मिलने वाल चारा इस वर्ष 10 से 15 रूपए प्रति पुली की दर से बिक रहा है। किसानों का कहना है कि कम बारिश होने की वजह से फसलों का उत्पादन कम हुआ है, जिसके चलते घास की पैदावार भी उम्मीद से कम हुई है। इस बार ज्वार की फसलें भी किसानों के लिए खास मुनाफे का सौदा साबित नहीं हो रही है। जिन काश्तकारों के पशु नहीं हैं अथवा घास ज्यादा है तो वे काश्तकार बढे दामों में घास बिक्री कर रहे हैं।
अब पशुओं के लिए चारे की समस्या किसानों को सता रही है। किसान इन दिनों ज्वार, मक्का आदि की कडब को सुरक्षित करने में जुटे हैं। टै्रक्टरों एवं बैलगाडियों में भरकर सूखे चारे का पारम्परिक तरीके से भण्डारण किया जा रहा है। पिछले वर्षो में घास व सूखा चारा बेचने का कार्य करने वाले बडे काश्तकार भी इस बार घास खरीद रहे हैं।
महंगा हुआ चारा
चार से पांच रूपए प्रति ज्वार की पुली के दाम में मिलने वाल चारा इस वर्ष 10 से 15 रूपए प्रति पुली की दर से बिक रहा है। किसानों का कहना है कि कम बारिश होने की वजह से फसलों का उत्पादन कम हुआ है, जिसके चलते घास की पैदावार भी उम्मीद से कम हुई है। इस बार ज्वार की फसलें भी किसानों के लिए खास मुनाफे का सौदा साबित नहीं हो रही है। जिन काश्तकारों के पशु नहीं हैं अथवा घास ज्यादा है तो वे काश्तकार बढे दामों में घास बिक्री कर रहे हैं।
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