Sunday, November 29, 2009

सर्दी में घाणी का तेल है पहली पसंद

गिलूण्ड। विज्ञान चाहे कितने ही पर फैला ले, लेकिन गांव की घाणी का निकला शुद्ध तेल आज भी घरों की पहली पसंद बना हुआ है। विशेष रूप से सर्दी के दिनों में मौसम के खानपान की बात हो तो भला कौन घाणी को याद नहीं करता! दक्षिणी राजस्थान में सर्दी के दिनों में विशेष ऊर्जा प्रदान करने वाला घाणी से निकाला तिल्ली का तेल हर घर की पसंद है। यद्यपि इस व्यवसाय पर भी मशीनीकरण की काली छाया पड चुकी है, लेकिन घाणी पर अपनी आंखों के सामने निकाला गया शुद्ध तेल स्वाद के साथ हर मायने में अपनी खास पहचान बनाता है।
कैसे निकलता है तेलग्रामीण क्षेत्रों में मिलने वाली घाणी प्राय: मजबूत लकडी की बनी होती है जो बैल चलित है। इसमें एक बार में करीब दस से पन्द्रह किलो तक तिल, सरसों या अलसी पैले जा सकते है। एक घाणी तैयार होने में करीब ढाई से तीन घंटे का समय लगता है। तेल की पूरी मात्रा प्राप्त करने के लिए चलती घाणी में थोडा- थोडा पानी का छिडकाव किया जाता है। लकडी की उलीचनी की मदद से घाणी का तेल अन्य बर्तन में लेकर गर्म किया जाता है ताकि उसमें सम्मिलित पानी का वाष्पीकरण किया जा सके। गांव में घाणी चलाने का कार्य प्राय: तेली (साहू) समाज के लोग ही करते हैं।
जिन ढाणियों, फलों अथवा छोटी बस्ती में इसका अभाव है वहां आस-पास के गांवों से लोग अपने रिश्तेदारों को घाणी का शुद्ध तेल भेजना नहीं भूलते। शहरी क्षेत्रों के लोग भी ग्रामीण क्षेत्रों से शुद्ध घाणी का तेल सर्दी के दिनों में मंगवाकर व्यंजनों का खूब लुत्फ उठाते है। आज भी कई परिवार तो ऎसे है जो वर्ष भर की अपनी जरूरत के हिसाब से तेल निकलवाकर घर में सुरक्षित कर लेते हैं।

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